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Tuesday, April 12, 2011
लाठी एक लाभ अनेक
मित्रों जिसकी लाठी उसकी भेंस की कहावत बड़ी ही आम है, किसी जमाने में इस कहावत का उदभव लाठी का प्रयोग कर किसी की भेंस हांक ले जाने के परिणामस्वरूप ही हुआ होगा और कालांतर में लाठी अपने इन्ही गुणों के कारण शक्ति का प्रतिक बन गई, , लाठी अगर हाथ में हो तो अगला आदमी आपसे विनम्र व्यवहार करता है, लाठी सदभावना की प्रतिक है लाठी हाथ में हो तो आपके सभी दुर्गुण भी सदगुणों में परिवर्तित हो जाते हैं, हाथ में लाठी हो तो अगला इन्सान आपको बड़ी श्रद्धा और आत्मीयता से देखता है अगर आप उसे कोई कार्य करने को कहें तो वो फ़ौरन से पेश्तर करता है, लाठी धारकों के आदेश की अवहेलना कोई नहीं कर सकता, लाठी धारक सामर्थ्यवान होता है और इसी कारण वो समस्त दोषों से मुक्त रहता है, तभी तो तुलसीदास जी ने कहा था ''समरथ को नहीं दोष गुसाई'' लाठी हाथ में आते ही किसी भी व्यक्ति में साहस और शक्ति के संचार में आशातीत वृद्धी हो जाती है वह स्वयं को सक्षम और सबल महसूस करने लग जाता है और यही विश्वास आत्मनिर्भरता का प्रतिक है, लाठी हाथ में हो और तेवर जीवन में कुछ कर गुजरने के हो तो किसी भी व्यवसाय को बिना पूंजी के ही तुरंत शुरू किया जा सकता है, मेरे पड़ोस के भीमराज जी के मंजले लड़के ने तो हाथ में लाठी लेकर बनिए की डूबत उगाही का कार्य आरंभ क्या तो इतनी सफलता साथ लगी की कुछ सालों में उनकी स्वयं की फाइनेस कम्पनी खड़ी हो गई, वे इस सफलता का पूरा श्रेय केवल और केवल लाठी को देते हैं,
लाठी धारकों का शुमार मोतबिरों में हो जाता है , वो अघोषित पंच सरपंच हो जाते हैं , लाठी हाथ में हो तो आप असफल नही हो सकते, लाठी हाथ में हो तो कुत्ता भी नहीं काट सकता, लाठी में बहूत गुण हैं, लाठी मानव का पुरातन और बुनियादी हथियार है, लाठी बलवानों, पहलवानों, और लठेतों की शोभा रही हैं जिनकी सामाजिक परिवर्तन में बहूत मुख्य भूमिका रही हैं, गाँधी जी ने भी इन्ही गुणों के कारण ही लाठी को जीवनपर्यंत के लिए अपना हमसफ़र बनाया था, लाठी धारक जन्मजात नेतृत्वकर्ता लगता है,उसके नेतृत्व का सभी लोहा मानते हैं, एक बार की सहारा देने से आपकी ओलादें धोखा दे दे , पर लाठी सहारा देने के मामले में धोखा नहीं दे सकती शायद इसी लिए राजस्थान सरकार ने तो लाठी धारक वृद्धों को भी विकलांग का दर्जा देने की घोषणा की है, इस आदेश के बाद सरकारी लाभ लेने के लिए कई वृद्धजन जो बिना लाठी के भी चलफिर सकते हैं वे लाठियां थाम लेंगे, सरकार का ये आदेश लाठी के बाज़ार में फिर तेजी ले आएगा,
मेने कई लाठी धारकों के पास बड़ी ही सुन्दर लाठिया देखी है, मेरे मिलने वाले एक लाठीधारक अपनी प्रिय लाठी के रखरखाव पर काफी खर्चा करते हैं, वे समय समय पर उसे तेल पिलाते हैं, और उसे कई रेशमी धागों से सजा कर रखते हैं, उन्होंने अपनी लाठी को लोहे के छल्ले भी पहना रखे हैं, उनका कहना है की इससे प्रतिध्वन्धी में सदेव भय व्याप्त रहता है, वो हमेशा इस भय से थर्राया रहता है की कहीं लाठी मेरे सिर को तरबूज की भांति नहीं फोड़ दे, इस कारण वो सदेव लाठी धारक के प्रति श्रद्धा का भाव लिए रहता है, तो मित्रों लाठी के इन गुणों के बारे में जितना लिखा जाये कम है, और में सोच रहा हूँ की एक अदद लाठी में भी खरीद लूँ, पर मेरे मन एक बात और आ रही है लाठी तो 20
-30 रूपये में आ जाएगी पर अभी तक लाठी को चलाने के लिए जिस होंसले की दरकार होती है वो दुकान अभी दुनिया में नहीं खुली है, ये सोच कर मेने लाठी के लाख गुणों के बावजूद भी उसे खरीदने का इरादा त्याग दिया, किसी मित्र में ये क्षमता हो तो इसमें लाभ ही लाभ है,
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मेरे स्वर्गीय दादा जी भी अपने हाथ मे सदेव लाठी रखते थे, तब मैं छोटा था मुझे नही पता की वह लाठी क्यों रखते थे, उनका शरीर १०० साल की उमर मे भी बड़ा मजबूत था उन्होने मरते दम तक कभी लाठी टीका कर नही चले वह बस उसे हाथ मे रखते थे ...कभी कभी कंधे पर भी. जब उनका अंतिम संस्कार किया गया तो मुझे याद है की उनकी लाठी उनके साथ ही अग्नि को समर्पित कर दी गई. अगर उस समय मुझे लाठी के गुण मालूम होते तो मैं उसे बचा कर पाने पास रखता, आप की वीयख्या बिल्कुल सही है, उनका बड़ा रौब था, वह एक बड़े शहूकार थे उनका पैसा कभी किसी ने नही मारा लेकिन उन्होने भी कभी किसी को लाठी नही मारी. आज जिन लोगों ने उन्हे देखा है उन्हे चौधरी धन सिंग जी की लाठी याद है, भाई अब मैं भी एक लाठी रखूँगा मुझमे रखने की हिम्मत है, जो की मुझे विरासत मे मिली है, मेरे पिताजी के पास भी एक लाठी है लेकिन वह उसे साथ नही रखते,मेरे पिता जी बहुत पहले मुझे भी एक लाठी भेट दी थी जो की मेरे बेड रूम मेरखी रहती है, बहुत लंबी और भारी है, उसे कार मे लेकर चलना संभव नही है. लेकिन अब मैं उसे कभी कभी हाथ मेले कर चलना चाहूँगा!
ReplyDeleteकोटि कोटि धन्यवाद आपको की अपने मेरी आँखें खोल दी, नही तो मेरी लाठी रखी रखी ही बूढ़ी हो रही थी. ओरसुना है की लाठी से मरने पर आई०पी०सी० की कोई बड़ी धारा भी नहीं लगती अगर जान से ही ना मार दिया जाए तो.
साधुवाद आपको, लाठी महिमा मंडित होती रहे.
Hukam Singh
हुकुम भाई साहब, मेरे दादा जी भी हमेशा लाठी अपने संग ही रखते थे, आजकल लाठी रखने का ट्रेंड नहीं है, रखते भी हैं तो बड़ी ही फेशनेबल छड़ी रखते हैं, जो बड़ी नाजुक होती है, वो बहुपयोगी नहीं होती है, और आपने ये बिलकुल सही फ़रमाया की लाठी धारदार हथिय...ार की श्रेणी में नहीं आने के कारण आई पी सी की संगीन दफाएँ भी नहीं लगती है, अगर आपको कई लोग घेर भी ले और आप अच्छे लाठीचालक हो तो आपका बल भी बांका नहीं हो सकता, और गुर्जर जाती तो पशुपालक जाती रही है इस कारण इस समाज में इसका बड़ा ही विकेन्द्रित स्वरूप हमे हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिलता है, लाठी आपने लाठी के गुणों को सराहा और अपने पारिवारिक अनुभवों से मुझे अवगत कराया इसके लिए आपको भी साधुवाद
ReplyDeleteMl Gurjar
ap lathi kahi pension pane ke liye to nhi lena chahte...hahahahaa khair ye majak tha aapne sahi kaha jiski lathi uski bhais jaise aaj america kar raha ha uski lathi m bada dum h bhai jise marzi apne m mila sakta hai mere pass lathi to hai ghar mai magar sath le kar nhi chal sakte han jarurat padne par chala jarur leta hu
ReplyDeleteRajender singh Gurjar
Bhai ji ,Budhape ka sahara han lathi,Lathi Ek Kartavnishth Bete ke samaan han jo kabhi bhi apne malik ko dokha nahi deti apitu uski aulad to ek baar uska sath chod sakti ha per lathi kabhi nahi, yahi karan tha ke humare Bade apne sath Lathi rakha karte the.....!
ReplyDeleteGurjar RAvi Kasana