आरुणी ऋषि अरुणी का पुत्र था। ऋषि धौम्य के आश्रम में वह कृषिविज्ञान और पशुपालन से
संबंधित विषयों का अध्ययन कर रहा था।
आरुणी ने देखा कि आश्रम की जमीन
ऊबड़-खाबड़ होने से वर्षाकाल में जमीन से बहते पानी के साथ बहुत सी मिट्टी भी बह जाती
है। इससे इस जमीन से अधिक पैदावार नहीं मिल पाती। उसने अपने गुरु से इसकी चर्चा की।
ऋषि धौम्य ने अपने शिष्य को सलाह दी कि वह जमीन को समतल करे और पानी के बहाव को
रोकने के लिए जमीन को एक बंध से घेर दे। आरुणी पूरे उत्साह से इस काम में लग गया और
कुछ ही समय में उसे पूरा कर दिया।
जब बारिश आई तो ऋषि धौम्य ने आरुणी से
कहा, "वत्स, वर्षा आरंभ हो गई है। मैं चाहता हूं कि तुम जाकर देख आओ कि जमीन के
चारों ओर का बंध सही-सलामत है कि नहीं। यदि वह कहीं पर से टूटा हो तो उसकी मरम्मत
कर दो।"
गुरु की आज्ञा शिरोधार्य मानते हुए आरुणी खेतों का मुआयना करने निकल
पड़ा। एक जगह बंध सचमुच टूटा हुआ था और वर्षा का पानी वहां से बह रहा था। बहते पानी
के वेग से बंध का और हिस्सा भी टूटने लगा था। आरुणी ने देखा कि यदि जल्द ही कुछ न
किया गया तो पूरे बंध के ही बह जाने का खतरा है। उसने आसपास की मिट्टी से बंध में
पड़ी दरार को भरने की कोशिश की, पर जब इससे कुछ फायदा नहीं हुआ, तो वह स्वयं ही दरार
के आगे लेट गया। उसके शरीर के दरार से लग जाने से पानी का बहना तो बंद हो गया, पर
सारा कीचड़ उसके शरीर से चिपकने लगा। लेकिन आरुणी ने इसकी कोई परवाह नहीं
की।
बहुत समय बीतने पर भी जब आरुणी आश्रम नहीं लौटा तो ऋषि धौम्य को चिंता
होने लगी। बरसात के रहते हुए भी कुछ शिष्यों को साथ लेकर वे आरुणी की खोज में निकल
पड़े।
आरुणी को कीचड़ से लथपथ जमीन पर लेटे देखकर वे दंग रह गए। पर उन्हें
सारी बात समझने में देर नहीं लगी। उन्होंने आरुणी को गले से लगा लिया और उसकी
प्रशंसा करते हुए बोले, "मैं तुम्हारे साहस और कर्तव्यनिष्ठा से बहुत प्रसन्न हूं।
तुमने अपनी जान की बाजी लगाकर तुम्हें सौंपा गया काम पूरा किया। ऐसी बहादुरी इस
दुनिया में बिरले ही देखने को मिलती है।
Ravi Kasana
vill & po- Jawli,Ghz
ravikasana_1984@yahoo.com
No comments:
Post a Comment