Tuesday, October 4, 2011

64 साल से झूठे तर्क देकर कांग्रेस विदेशी कंपनियों को भारत बुला रही हैं| और आज हालत यह हो गई है कि 5000 विदेशी कंपनिया भारत में घुस चुकी हैं ।


जब कि इतिहास इस बात का गवा है । कि गल्ती से हमने एक ईस्ट इंडिया कंपनी को बुला लिया था और 250 के लिये अपनी आजादी गवा बैठे थे ।


फ़िर आजादी पाने के लिये (भगत,सिहं उधम सिहं , सुभाष चंद्र बोस, लाला लाजपत राय, विपिन चंद्र पाल,नाना सहिब पेश्व,) और ऐसे 7 लाख 32 हजार क्रतिंकरियो को अपना बलिदान देना पड़ा तब जाकर आजादी मिली ।

http://www.youtube.com/watch?v=uKNDernoIAk&feature=share
लिकेन आज तो 5000 विदेशी कंपनिया हो गई हैं । क्या ये हमारे देश कि आजादी के लिये दुबारा खतरा नहीं है ??

जब ये सवाल भारत सरकार से पूछा जाता हैं तो भारत सरकार विदेशी कंपनियों को भारत में बुलाने के लिये 4 तर्क देती हैं.
1) विदेशी कंपनिया पुजीं लाती है।
2) विदेशी कंपनिया तकनीकी लाती हैं
3) विदेशी कंपनिया ऐकस पोर्ट बढ़ाती है ।
4) विदेशी कंपनिया रोजगार बढ़ाती हैं |


ये 4 तर्क कितने झूठे हैं उनका पुरा खुलासा राजीव दिक्षित जी ने पुरे दस्तावेजो और सबूतो के साथ इस विडियो में किया हैं । कृपया पुस विडिशी देखें और इसे भारत के अंतिम आदमी व्यकित तक पहुँचाये । इस विडियो में आपको पताकिसे पिछले 64 साल से देश की लूट हमारे घर से हो रही हैं ।

इस विडियो तो देखने के बाद उन लोगो को भी सभी जवाब मिल जायेंगे जिनको बाबा रामदेव के स्वदेशी अंदोलन से परेशानी हैं|

जो अकसर सवाल करते है कि क्यों बाबा विदेशी कंपनियो के खिलाफ़ है ??
बाबा अपना समान बेच कया सबित करना चाहते हैं ? ?
वो व्यपारी हैं या सनयासी ? ?
ऐसे सैक्डों सवालो के जवाब आपको इस विडियो में मिल जायेंगे । और हमें आशा हैं इस विडियो को देखने के बाद आप हमरे जरुर सहमत होगें । और हमारे भारत स्वाभिमान अंदोलन में हमारे साथ जुड़ेगे और फ़िर मिल कर भारत माता की रक्षा करेंगे ।।

दुनिया के मेले में क्या नहीं बिकता ?


दुनिया के मेले में क्या नहीं बिकता ?

बात दो दिन पुरानी है मैं हमेशा की तरह अपने ऑफिस से घर पहुंचा सुबह के 6 बज रहे थे आप लोगों के मन में डाउट की बिल्ली म्याऊं म्याऊं करे उसके पहले ही बता दूँ मैं रात में वेबसाइट अपडेट करता हूँ और दिन में घोड़े बेचकर सोता हूँ.

खैर मैंने अख़बार उठाया और उसका स्पोर्ट पेज खोला उस पर एक खबर छपी थी 'फिर होगी खिलाडियों की नीलामी' मेरे लिए खबर नयी नहीं थी लेकिन मेरे अंतर्मन को यह बात खटक गयी.मैं उसी तल्लीनता से खबर पढ़े जा रहा था कि अचानक मैं चौंका मेरे बाजू में मेरा ही कोई हमशक्ल बैठा हुआ था.

मुझे कुछ डर महसूस हुआ मैं वहां से खिसका लेकिन यह क्या वो भी मेरे साथ - साथ ऐसे खिसका जैसे मेरे परछाई हो. मैं और डर गया.मैंने सोचा चलो यहाँ से उठकर ही चलना चाहिए और मैं वहां से उठा लेकिन यह क्या उसने मेरा हाथ पकड़कर ऐसा झटका दिया कि मैं यथास्थिति जा पंहुचा.
मैं कुछ बोलूं उसके पहले वही बोल पड़ा मुझसे भागकर कहाँ जाओगे मैं कोई इंसान नहीं जिससे डर कर भाग जाओगे मैं हूँ तुम्हारा अंतर्मन मेरे कुछ सवालों के जवाब दे दो फिर मैं खुद ही चला जाऊंगा.

मैंने कहा ठीक है बोलो.वह बोला यह बताओ दुनिया में इंसान भी बिकते हैं क्या ?मैंने कहाँ हाँ कभी कभी इंसान भी बिक जाया करते हैं .तो वह बोला तुम तो नहीं बिके अब तक .मैंने कहा कभी कभी नहीं भी बिकते हैं .

वह बोला अच्छा है फिर क्या - क्या बिकता है .मैंने कहा यह दुनिया एक मेला है और यहाँ सब कुछ बिकता है पहले लोग सब्जी भाजी बेचकर अपने काम चलाते थे , हीरे मोती बेचते थे , अनाज बेचते थे , बर्तन बेचते थे.लेकिन भैया यह पेट की भूख नहीं है (कुछ मजबूर लोगों को छोड़कर) लालच की भूख है जितनी बुझाने की कोशिश करो बढती जाती है और लोगों ने खून बेचना शुरू किया फिर किडनी , दिल और यहाँ तक कि अपना शरीर भी .लेकिन जब लगा कि टुकड़ों में बेचने से इतना फायदा तो क्यों ना पूरा का पूरा इंसान ही बेच दिया जाये और फिर बड़े बड़े अभनेता , अभिनेत्री, नेता आदि बिकने लगे .

जब सब बिकने लगे तो खिलाडी क्यों पीछे रहते वे भी बिकने लगा . मतलब सीधा सा है अब इंसान भी बिकने लगा है .मैंने अपनी बात खत्म करके जैसे उसकी ओर देखा वह मुझे अजीब सी नज़र से देख रहा था मुझे फेर डर लगा मैंने कहा - ए भाई ऐसे क्यों देख रहा है. वह जोर जोर से हंसा , मुझे और डर लगा मैंने फिर पूछा भाई बता दे मुझे बहुत डर लग रहा है वह बोला मैं इसलिए हंस रहा हूँ कि एक दिन तू भी बिक जायेगा.

मैं मुस्कुराया और बोला नहीं रे मैं एक आम आदमी हूँ और आम आदमी कि दुनिया में कोई कीमत नहीं .मैं नहीं बिकूंगा .उसने कुछ राहत कि सांस ली और बोला ठीक है अब मैं चलता हूँ लेकिन याद रखना यदि तू बिकने लगे तो मुझे पहले बाहर निकाल देना .और वहां से चला गया लेकिन मैं यही सोचता रहा कि जब मैं बिकूंगा तो इसे बाहर कैसे निकाल पाऊंगा......

Regards
Ravi Kasana
Manager-Technical
Delhi Transport Corporation
vill & Po- Jawli,Ghaziabad
mob-9716016510

Monday, October 3, 2011

* दो गज ज़मीन और खुला आसमान *

* दो गज ज़मीन और खुला आसमान *

एक आम आदमी
कुछ टूटे फूटे सपने लिए,
अपने घर से निकलता है.
यह सोचकर,
शायद कहीं उसे
अपने ख्वाबों की मंजिल मिले

गर्मियों की तेज़ धूप में
तन से बहता पसीना देख ,
सोचता है पेड़ की ठंडी छाँव में
कुछ शीतलता का अनुभव किया जाये
रुकता है पर
ख्याल आता है
मंजिल अभी दूर है
रुकना उचित नहीं.

फिर चल पड़ता है
जाड़ों की रुत
तन को कपाती है,
बारिश की बुँदे
चेहरे पर करती हैं प्रहार
फिर भी नहीं रोकता वह अपने कदम
बस चलता जाता है
उम्मीद के नए सबेरे की तलाश में.

चलते चलते बाल सफ़ेद हो जाते है
चेहरे पर झुर्रियां आ जाती हैं
और एक दिन जब देखता है तो
उसे नशीब क्या होता है
दो गज ज़मीन
और खुला आसमान

और फिर हँसता है
कहता है
वाह रे मालिक
सिर्फ इसके लिए
इंसान इतनी लम्बी यात्रा करता है.

और स्वामी जी ने आँखों में मिर्च डाल ली


....और स्वामी जी ने आँखों में मिर्च डाल ली


बचपन में सभी से पूछा करते थे -"क्या आपने भगवान को देखा है ?"अपनी जिज्ञाषा जब तक शांत नहीं हुई वे इसी प्रश्न को पकडे रहे और एक दिन जब स्वामी रामकृष्ण परमहंस से उनका सामना हुआ और उन्होंने कहा की हाँ मैंने भगवान को देखा है बिल्कुल ऐसे ही जैसे तुम्हे देख रहा हूँ .तब कहीं जाकर उनके मन की जिज्ञाषा शांत हुई .वे कोई और नहीं जन जन के आदर्श स्वामी विवेकनद ही थे .

उनके जीवन का एक वृतांत और मुझे याद आ रहा है जो कभी मेरे गुरूजी ने मुझे सुनाया था उसे भी आप लोगों से बांटता हूँ .स्वामी विवेकानंद हमेशा सादगी में जीवन जीना पसंद करते थे वे किसी भी महिला को बुरी नज़र से नहीं देखा करते थे , एक दिन उनके पड़ोसी के यहाँ कोई लड़की आई और स्वामी जी की नज़रें उस पर पड़ गईं और उनके मन में हल्की सी हलचल पैदा हुई इससे पहले की उनके मन में कोई और ख्याल आता वे अपने रसोई घर में गए और अपनी आँखों में लाल मिर्च डाल ली यह कहते हुए की सारा कुसूर इन्ही आँखों का है न ये देखती और न मेरे मन में कोई बुरा विचार आता.

कुछ ऐसा था स्वामी जी का व्यक्तित्व जो की आज जन जन को यही सन्देश देता है की यदि आपने किसी का कार्य को करने का ठान लिया है तो उसे पूरा करे बगैर रुको मत और सादगी के साथ अपने जीवन को व्यतीत करो कभी किसी की और बुरी नज़र से मत देखो क्योकि बुरे की शुरुआत नज़र से ही होती और अच्छाई मार्ग भी नज़रें ही है.

इसलिए अपनी नज़रों को अच्छे दृश्यों की ओर ले जाये और बुराई से बचाए. 12 जनवरी को स्वामी जी का जन्मदिवस युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है इस दिन हर युवा को शपथ लेना चाहिए की वह स्वामी जी के सपने "बसुधैव कुटुम्बकम" को पूरा करने का संकल्प ले.स्वामी जी के विचार जन जन तक पहुचाये.

Regards
Ravi Kasana
Manager-Technical
Delhi Transport Corporation
Vill & Po-Jawli,Ghaziabad
Mob-9716016510

सोनियाजी सोनियाजी राहुल बाबा कब व्याह रचाएंगे,


एक दिन मनमोहनजी के मन में ख्याल आया,
जाकर उन्होंने सोनिया जी से यूँ फ़रमायाA
सोनियाजी सोनियाजी राहुल बाबा कब व्याह रचाएंगे,
या फिर कंवारे रहकर ही जिंदगी बिताएंगेA

और नहीं तो क्या अग्नि के सात फेरे लगायेंगे,
या फिर राजीवजी की तरह विदेशी मेम लायेंगेA

सुनते ही झाल्लायीं सोनियाजी बोली चुप रहिये आप
जब देखो करते रहते हो फालतू बकवास A

अगर राहुल बेटा कंवारा ही रहेगा,
तो गाँधी परिवार विकास कैसे करेगाA

और अगर बाबा विदेशी मेंम लायेंगे.
लोग फिर विदेशी मूल का मुद्दा उठाएंगेA

हम तो बाबा के लिए भारतीय बाला लायेंगे,
और उसे देश का प्रधानमंत्री बनायेंगेA

सुनकर मनमोहनजी सुन्न रह गए,
जैसे सारे अरमान पानी में बह गएA

उस दिन उन्हें ये हो गया एहसास
राजनीति में कोई किसी का नहीं है खास.

बोले सोनियाजी अब मैं चलता हूँ ,
बाबा के लिए कोई भारतीय बाला तलाश करता हूँA

उसके बाद से मनमोहनजी की तलाश जारी है
और साथ में सन्यास लेने की भी तयारी हैA

मुसाफिर: राहों से मंजिल तक का सफ़र |


मुसाफिर: राहों से मंजिल तक का सफ़र |




घर से निकला एक मुसाफिर ,
दूर चला कुछ और गया गिर,
फिर भी उठकर चला बावला
रुकता है वह कहाँ पे आखिर|


दूर अभी है उसकी मंजिल,
राहें उसकी बड़ी हैं मुश्किल,
हर हाल में उसको चलते जाना ,
करना है मंजिल को हासिल |


पत्थर कोई राह में आया,
दी ठोकर और उसे गिराया,
काँटों ने तो ज़ख्म दिए ही
फूलों ने भी उसे सताया |


कोई नहीं है उसका साथी,
ये दूल्हा है बिन बाराती,
अपनी मंजिल चला है पाने,
जो इसकी दुल्हन कहलाती |


उसका देखा ऐसे गिरना,
और अचानक उसे संभलना,
अपनी मंजिल की राहों पर,
गिरना उठाना आगे बढ़ना |


मै रह सका न यह पूछे बिन,
क्यों चलता है तू यूँ रात दिन,
दिन क्यों जीये ऐसे चलकर,
रातें क्यों काटे तारे गिन |


क्यों सर्दी में रहे ठिठुरता,
क्यों गर्मी में रहता तपता,
अपनी मंजिल की धुन में यूँ,
क्यों बारिश में रहे भीगता |


मेरे प्रश्नों को वह सुनकर,
बोला मन ही मन कुछ गुनकर,
सच करना है उनको भाई,
जो रखे हैं मैंने सपने बुनकर |


सर्दी गर्मी धुप छाँव ये,
मेरे लिए क्या नगर गाँव ये,
अपने साहिल पर जाऊंगा,
ले जाएगी समय नाव ये |


दूर अभी है मंजिल मेरी,
लग जाये कितनी ही देरी,
चाहे सुख की सुबह संग हो,
या फिर दुःख की रात अँधेरी |


सदा चलूँगा यूँ ही तन्हा,
कष्ट मिलेंगे हर एक लम्हा,
नहीं रुकूँगा कभी मैं भाई,
लव पर ख़ुशी हो आँखे नाम या |


इतना यकीं है मुझको सारंग,
मेहनत लाएगी मेरी रंग,
अपनी मेहनत से मंजिल पा,
कर दूंगा एक दिन सबको दंग |


दिन पश्चात् शाम आती है,
शाम अँधेरी रात लाती है,
उस अंधियारी रात बाद ही,
सुबह की शुरुआत आती है |


समय चक्र है चलता रहता,
हर पल रूप बदलता रहता,
मंजिल निश्चित पाता है वह,
जो अपनी राहों पर चलता रहता |


बोल रहा था वही मुसाफिर,
मैं सुन रहा था ध्यान लगाकर,
वीर वही है इस दुनिया में,
संभल जाये जो ठोकर खाकर |


पत्थर कर पायें क्या उसका,
पर्वत भी दे जाएँ रास्ता ,
राहें खुद बनती हैं सारथी,
जिसके मन विश्वास है पलता |


अभी अगर ये बुरा समय है,
फिर भी मन मेरा निर्भय है,
बस मन ये विश्वास लिए हूँ,
इक दिन होनी मेरी जय है |


हार कभी न मै मानूंगा,
इस पथ पर चलता जाऊंगा,
आत्म विश्वास के बलबूते पर,
निश्चित मंजिल मैं पाउँगा |


गर इक छोटी सी ठोकर से,
रुक जाऊं ज़ख्मों के डर से,
पा न सकूँगा कभी भी मंजिल,
मोह रखूं जो अपने घर से |


ये दुनिया तो बहुत बड़ी है,
ज़ख्मो के कांटे लिए खड़ी है,
पर गुलाब की तरह है ये,
काँटों संग ही पुष्प लड़ी है |


लोगों ने मुझको बहकाया,
परिवार का मोह दिखाया,
बोले कष्ट न सह पायेगी,
इन राहों पर तेरी काया |


मैंने बात सुनी हर जन की,
परवाह न की कोई उलझन की,
कदम उठाया इन राहों पर,
सुनकर बस आवाजें मन की |


चला हूँ अपनी मंजिल पाने,
कमज़ोर ज़माने को दिखलाने,
मुझको बहकाने वाले ये,
मेरी भी हस्ति पहचाने |


आगे बोला सुनो सुहानी,
महाभारत की इक कहानी,
मैंने जिसको कभी पढ़ा और,
पढ़कर लक्ष्य की महिमा जानी |

गुरु द्रोण देते थे शिक्षा,
इक दिन में आई इच्छा ,
क्यों न आयोजित कर लें वो,
अपने शिष्यों की एक परीक्षा |


एक तोते का खिलौना लाकर,
वृक्ष डाल पर उसे बिठाकर ,
सब शिष्यों को पास बुलाया,
और कहा उनको समझाकर |


शुक नेत्र को लक्ष्य बनाना,
और ज़मीन पर उसे गिराना,
पर अनुमति न दूँ मै जब तक,
कोई भी न तीर चलाना |


तैयार हुए सब लेके चाप सर,
तब गुरुवर बोले मुस्काकर,
जो कुछ सबको पड़े दिखाई,
कहो यहाँ पर इक इक आकर |


सबसे पहले आये युधिष्ठर,
बोले गुरु को शीश नवाकर,
दीखते है मुझको शुक, चाप, सर
वृक्ष बन्धु और आप गुरुवर|


बोला गुरु ना बाण चलाओ,
अपने स्थान पर वापस जाओ,
अगले शिष्य तुम सामने आओ,
आकर जो पूछा वो बताओ |


दुर्योधन ,भीम नकुल सब आये,
आकर सबने हाल सुनाये,
लेकिन किसी की भी बातें सुन,
गुरुदेव जी ना हर्षाये |


अंत में अर्जुन सामने आकर,
बोला अपना शीश झुकाकर ,
मुझको जो देता है दिखाई,
वो है शुक नेत्र बस गुरुवर |


अर्जुन से हर्षित हो गुरुवर,
बोले अर्जुन छोडो तुम सर,
अर्जुन ने ज्यों ही तीर चलाया,
तोता गिरा ज़मीं पर आकर |


लक्ष्य हो जिसका अर्जुन जैसा,
फिर बोलो उसको भय कैसा,
हार कभी ना उसकी होती,
है हर लक्ष्य उसे जय जैसा |


आगे कहता गया मुसाफिर,
खाई मैंने कितनी ठोकर,
फिर भी विश्वास लिए चलता हूँ,
लौटूंगा मंजिल का होकर |


मैंने कहा तू चलता जा रे,
तेरे संग है मेरी दुआ रे,
इक दिन इन राहों पर चलते,
तू तो अपनी मंजिल पा रे |


अब उसने ली मुझसे बिदाई,
आगे को बढ़ चला वो राही,
कुछ ही दूर चला बेचारा,
फिर से कोई ठोकर खाई |


पर फिर भी ना हिम्मत हारी,
फिर से लगा दी शक्ति सारी,
आखिर अंत में चलते चलते,
तय कर ली उसने राहें सारी |


पाई उसने सुबह की लाली,
आई जीवन में खुशहाली,
कुछ ही लम्हों बाद सुना ये ,
उस राही ने मंजिल पाली |


गर पाना है सच में मंजिल,
तो फिर करो ना लक्ष्य को ओझल,
आशा की सारी कलियों को ,
विश्वास का तुम देते जाओ जल

हे युवा शक्ति जागो-जागो, भारत माँ है अब रही पुकार

हे युवा शक्ति जागो-जागो, भारत माँ है अब रही पुकार
एक आग जला लो सीने में ,कुछ सांसों में गर्मी भर लो,
कुछ संकल्प विचारों से अपने मन को निर्भय कर लो |

ये वक़्त नहीं थक कर थम आराम कहीं पर करने का,
ये वक़्त है आंधी तूफां बन दुनिया में आगे बढ़ने का |

स्वार्थ सिद्धि में लिप्त ये नेता भूल चुके हैं जनता को,
लूट रहे हैं हम सबको और भारत माँ की ममता को |

आगे बढ़कर हमको अब सबक इन्हें सिखलाना है,
बहुत सह लिया अब ना सहेंगें इनको ये बतलाना है |

क्या देश था अपना, अब क्या है, और ना जाने क्या होगा,
आओ उतार फेंके हम ,है ओढ़ा भ्रष्टाचार का जो चोगा |

हे युवा शक्ति जागो-जागो, भारत माँ है अब रही पुकार,
काँप उठें ये भ्रष्टाचारी अब कुछ ऐसी भरो हुंकार

दोस्ती


दोस्ती,
एक फूल है जो,
खिलता है प्रेम और
निष्ठां की बेलों में,

जिन्हें सींचा जाता है
विश्वास के जल से

जब तक प्रेम और निष्ठां की ,
इन लताओं को ,
विश्वास का जल मिलता रहेगा,
दोस्ती का फूल हमेशा खिलता रहेगा,

लेकिन ,

जैसे ही इन लताओं को ,
विश्वास का जल मिलना बंद हो जायेगा
दोस्ती का फूल मुरझा जायेगा ,

और एक दिन
सूखकर ,टूटकर
जमीन पर गिरकर ,
खाक में मिल जायेगा |

बच्चों से सहयोग मांगने में माँ बाप को संकोच क्यों ?


बच्चों से सहयोग मांगने में माँ बाप को संकोच क्यों ?
एक समय था जब हम बच्चे हुआ करते थे और हमें किसी भी चीज़ की ज़रूरत होती थी तो हम अपने माँ बाप से जिद करने लगते थे ,और हमारी ख़ुशी के लिए वे हमारी हर जिद को पूरा करने का हमेशा प्रयास किया करते थे चाहे वे चीजें कितनी ही महंगी क्यों ना हों लेकिन वह उन्हें हमारी ख़ुशी के आगे सस्ती ही नज़र आती थीं ,और आज भी वे हमारी हर ख़ुशी का ख्याल रखते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह हमारे बचपन में रखा करते थे ,हमारी जिद के आगे आज भी वे कहीं ना कहीं झुक जाया करते हैं, लेकिन आज एक प्रश्न ने मुझे झकझोर कर रख दिया है प्रश्न यह है कि हमारी हर जिद को पूरा करने वाले हमारे माँ बाप आज अपनी किसी ज़रूरत के लिए भी हमसे उम्मीद रखने में क्यों झिझकते हैं आखिर क्या कारण है कि जिन बच्चों ने उनकी उंगली पकड़ कर चलना सीखा,उनके ही बल बूते पर आज अपने पैरों पर खड़े हुए और आज उन्हीं बच्चों से पल भर का सहारा लेने में भी वे संकोच करते हैं ,शायद इसलिए कि समय के साथ साथ समाज कि प्रकृति भी बदल गयी है ,समाज में कुछ ऐसे तत्त्व भी मौजूद है जिन्होंने कभी अपने माँ बाप के एहसानों को समझा ही नहीं और उनके अरमानों को हमेशा रौंदते चले गए कभी दौलत के नशे में , कभी औरत के चक्कर में,तो कभी सोहरत के फेर में |


ये चंद तत्त्व मछली वाली उस कहावत को सच सावित करते हैं जिसमे कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है | यही कारण है कि आज माँ बाप अपने बच्चों से सहयोग लेने में परहेज़ करते हैं | जब कभी वैलेंटाइन्स डे आता है रोज़ डे आता है सारा युवा वर्ग पागल हो जाता है ,बाज़ार साज़ जाते हैं अपने प्रेमी प्रेयसी को देने के लिए तरह तरह के गिफ्ट ख़रीदे जाने लगते हैं और बहुत ही धूम धाम से इन दिनों को मनाया जाता है लेकिन मदर्स डे ,फादर्स डे कब आता कब चला जाता है किसी को पता ही नहीं चलता क्योंकि आज का युवा सिर्फ भोग विलास की जिंदगी में मशगूल हो गया है माँ बाप के प्रति भी उसके कुछ फ़र्ज़ हैं यह आज का युवा भूल चुका है उसे नज़र आती है तो सिर्फ दुनिया कि चकाचौंध, इतना ही कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो इस चकाचौंध में इतने अंधे हो चुके हैं कि अपने माँ बाप को किसी से मिलवाने में भी शर्म मह्शूश करते हैं भूल जाते हैं कि ये वही माँ बाप हैं जिन्होंने आज उन्हें दुनिया में सर उठाकर चलने लायक बनाया है |जो अपने प्रेमी प्रेयसी को महंगे से महंगा तोहफा दे सकते हैं वही अपने माँ बाप को सौ रूपये का सॉल खरीदते समय अपने पर्स को खाली सा मह्शूश करते हैं |

ज़रा सोचिये दुनिया में ऐसी कौनसी दौलत है जो हमारे माँ बाप से बड़ी है जब उन्होंने किसी दौलत को हमसे बड़ा नहीं समझा तो हम क्यों आज वक़्त के साथ इतने बदल गए कि अपने ही माँ बाप के लिए पराये हो गए ,जिस तरह उन्होंने हमारे लिए अपना हर फ़र्ज़ निभाया वैसे ही हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी उनकी इच्छों का सम्मान करे उनके हर अरमान को अपना खुद का अरमान बनालें और झुठला दे एक मछली सारे तालाब....वाली कहावत को | ताकि हमारे माँ बाप सर उठा कर कह सकें कि हम ....के माँ बाप हैं |

कमर तोड़ती महंगाई

कमर तोड़ती महंगाई
अपने पथ पर नए नए आयाम जोडती महंगाई,
चल पड़ी है अच्छे अच्छों की भी कमर तोड़ती महंगाई |

रसोई में अम्मा रोती है सब्जी आज बनाऊं क्या,
झुंझला उठते हैं अब बाबा रोज़ रोज़ मैं लाऊं क्या |

सब्जी मंडी लाल है जैसे, आटे दाल भी महंगे हैं ,
महंगी है गैस रसोई की, और महंगे नेकर, लहंगे हैं |

बिजली महंगी, दूध है महंगा, महंगा अब तो पानी है,
चांदी महंगी , सोना महंगा, महंगी प्रेम निशानी है |

वाहन पर चलने से पहले अपना जेब टटोलते हैं,
चाय की प्याली लेने में भी जैसे ह्रदय डोलते हैं |

माथे पर बल पड़ते हैं बच्चों की फीस चुकाने में,
सारा वेतन जाता है अब पुस्तक बस्ता लाने में |

आम आदमी के जीवन का, जैसे हर पल महंगा है,
आज है महंगा अब है महंगा और फिर कल भी महंगा है |

सुबह से लेकर शाम तलक, जो भी कमाई होती है,
एक दिवस की मुश्किल से, उससे भरपाई होती है |

सारे सपने महंगाई की मार में दबकर चूर हुए,
टूटे फूटे सपनों के संग, जीने को मजबूर हुए

आम आदमी

आम आदमी
मुझको ना समझो मामूली,
मैं तो हूं एक आम आदमी,
मैंने काम किये हैं सारे,
समझो ना नाकाम आदमी |

बड़े बड़े जो सेठ खड़े हैं ,
तान के अपना पेट चले हैं.
उनसे पूछो बने वो कैसे,
वो हैं मेरे परिणाम आदमी |

सिंहासन पर जो बैठा है,
सत्ता मद में जो ऐंठा है,
मैंने ही है उन्हें बनाया ,
बिन मेरे वो बेदाम आदमी |

हो कहीं कतार राशन की,
या हो कहीं भीड़ भाषण की,
दंगल में जंगल में सब में,
भटकता मैं परेशान आदमी |

मुझसे बनी है सारी सृष्टी
मेरे बिना क्या किसकी हस्ती,
मुझे भीड़ में सभी है गिनते ,
फिर भी खुश हूं मैं आम आदमी|

मुझमे एक कमी है भारी,
मैं खुद हूं अपनी लाचारी,
औरो को मैं बनाने वाला ,
पर खुद से अंजान आदमी |

हाय पैसा .....


हाय पैसा .....



हाय पैसा हाय पैसा
क्या क्या नाच नचाये पैसा |
इसको पाने सब हैं पागल
जाने ये क्या चीज़ है पैसा ||

जिसके पास जमा है पैसा,
उसके घर ही आये पैसा |
जिसके पास नहीं है पैसा,
उससे दूर ही जाये पैसा ||

बड़े बड़े महलों में जाकर,
हमने कुछ देखा है ऐसा |
बाबु खूब कमाए पैसा,
अम्मा खूब उड़ाए पैसा ||

झोपड़ियों में देखा जब तो ,
मंज़र कुछ पाया है ऐसा,
कमा रहा है सारा कुनबा,
फिर भी हर शय भूखे जैसा ||

बड़े बड़े बाज़ार सजे हैं ,
जिनको खूब लुभाए पैसा |
और पान की गुमठी की भी,
खासी शान बढ़ाये पैसा ||

कोई नहीं ये अब तक जाना,
क्या है चीज़ क़यामत पैसा,
है ग़रीब की रोटी पैसा ,
है अमीर की चाहत पैसा ||

क्या हैं ये धातु के टुकड़े,
और है क्या ये काग़ज़ जैसा |
जिसके बिना ना कुछ भी चलता,
लोग जिसे कहते हैं पैसा ||

Regards
Ravi Kasana
manager-technical
Delhi Transport Corporation
Vill & Po-Jawli,Ghaziabad
mob-9716016510

बाबा का संग्राम



तम्बू गाढ़ के जब दिल्ली में, बैठ गए थे बाबा|
कांप उठी पीएम की कुर्सी, राज काज थर्राया ||

पहले तो प्रलोभन देकर, बाबा को चाहा फ़साना|
पर जब ना माने तो शासन ने, बुन लिया ताना बाना||

आधी रात गए सेना ने, ऐसा कहर था ढाया|
जिसे देखकर जलिया वाला, कांड भी था शर्माया ||

औरत के वस्त्रों में छुपकर, बाबा वहां से भागे|
हर शख्स ने सोचा, जाने अब क्या होगा आगे ||

बाबा पर प्रतिबन्ध लगाया, ना दिल्ली में आयें |
दिल्ली से बाहर ही रहकर, अपना योग सिखाएं ||

जैसे ही प्रतिबन्ध हटा बाबा फिर दिल्ली आये|
पहले मिले समर्थक से, फिर शासन पर गुर्राए ||

बोले यह सरकार, जो पहले है भ्रष्टाचारी|
अब तो और भी खतरनाक है, बन गई अत्याचारी ||

लेकिन ना मैं डरा था पहले, ना ही कभी डरूंगा|
भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े, हर शख्स के साथ लडूंगा ||


2.चली हजारे की आंधी,
फिर रामदेव ने किया प्रहार.

कुछ ना बना तो सत्याग्रह पर,
करने लगी ज़ुल्म सरकार,

जो भी हो पर देख के सबकुछ,
इतना हम कह सकते हैं,

देखके जागती जनता को, .
ज्यों काँप उठा है भ्रष्टाचार

Sunday, October 2, 2011

Indira Gandhi -The Lady Behind the Killing of cows



इंदिरा गांधी को एक संत ने श्राप दे
दिया था.और वो सच हुआ था !
1966
के समय में एक़ संत थे
क्रपात्री जी महाराज।
इंद्रा ग़ांधी उन्ही के कारण चुनाव
जीती थी|

इंद्रा ग़ांधी ने उनसे वादा किया था चुनाव जीतने पर गाय
हत्या बंद करवा देगीं. तब रोज
कि 15000 गाय कत्ल
की जाती थी
Ab 26000 kati jat i
hai चुनाव जितने के बाद इंद्रा ग़ांधी ने धोखा दीया । क्रपात्री जी ने एक
दिन लाखो भगतो के सथ संसद
क़ा घिराव कर दिया| की गाय के
कतल खाने बंद होगे इसके लिये
बिल पास करो


लिकेन इंद्रा गांधी ने उन पर भगतो के उपर गोलिया चल तब
क्र्पात्री जे ने उन्हे श्राप दे
दिया की जिस तरह
तुमने इन पर गोलिया चलवाई है
उसी तरह तुम मारी जाओ गी.
और (ये अजीब इत्फ़ाक हैं.)जिस दिन इंद्रा गांधी ने
गोलिया चलवाई थी उस दिन
गोपा अष्टमी थी. (गाय के
पूजा का सब्से बड़ा दिन) और जिस
दिन इंद्रा गांधी को गोली मरी गई
उस दिन भी गोपा अष्टमी थी
http://www.youtube.com/watch?v=hhm7dty8NGM&feature=share

Regards
RAvi KAsana
Manager-Technical
Delhi Transport Corporation
Vill & Po- Jawli,Ghaziabad
Mob-9716016510