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Monday, October 3, 2011
बच्चों से सहयोग मांगने में माँ बाप को संकोच क्यों ?
बच्चों से सहयोग मांगने में माँ बाप को संकोच क्यों ?
एक समय था जब हम बच्चे हुआ करते थे और हमें किसी भी चीज़ की ज़रूरत होती थी तो हम अपने माँ बाप से जिद करने लगते थे ,और हमारी ख़ुशी के लिए वे हमारी हर जिद को पूरा करने का हमेशा प्रयास किया करते थे चाहे वे चीजें कितनी ही महंगी क्यों ना हों लेकिन वह उन्हें हमारी ख़ुशी के आगे सस्ती ही नज़र आती थीं ,और आज भी वे हमारी हर ख़ुशी का ख्याल रखते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह हमारे बचपन में रखा करते थे ,हमारी जिद के आगे आज भी वे कहीं ना कहीं झुक जाया करते हैं, लेकिन आज एक प्रश्न ने मुझे झकझोर कर रख दिया है प्रश्न यह है कि हमारी हर जिद को पूरा करने वाले हमारे माँ बाप आज अपनी किसी ज़रूरत के लिए भी हमसे उम्मीद रखने में क्यों झिझकते हैं आखिर क्या कारण है कि जिन बच्चों ने उनकी उंगली पकड़ कर चलना सीखा,उनके ही बल बूते पर आज अपने पैरों पर खड़े हुए और आज उन्हीं बच्चों से पल भर का सहारा लेने में भी वे संकोच करते हैं ,शायद इसलिए कि समय के साथ साथ समाज कि प्रकृति भी बदल गयी है ,समाज में कुछ ऐसे तत्त्व भी मौजूद है जिन्होंने कभी अपने माँ बाप के एहसानों को समझा ही नहीं और उनके अरमानों को हमेशा रौंदते चले गए कभी दौलत के नशे में , कभी औरत के चक्कर में,तो कभी सोहरत के फेर में |
ये चंद तत्त्व मछली वाली उस कहावत को सच सावित करते हैं जिसमे कि एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है | यही कारण है कि आज माँ बाप अपने बच्चों से सहयोग लेने में परहेज़ करते हैं | जब कभी वैलेंटाइन्स डे आता है रोज़ डे आता है सारा युवा वर्ग पागल हो जाता है ,बाज़ार साज़ जाते हैं अपने प्रेमी प्रेयसी को देने के लिए तरह तरह के गिफ्ट ख़रीदे जाने लगते हैं और बहुत ही धूम धाम से इन दिनों को मनाया जाता है लेकिन मदर्स डे ,फादर्स डे कब आता कब चला जाता है किसी को पता ही नहीं चलता क्योंकि आज का युवा सिर्फ भोग विलास की जिंदगी में मशगूल हो गया है माँ बाप के प्रति भी उसके कुछ फ़र्ज़ हैं यह आज का युवा भूल चुका है उसे नज़र आती है तो सिर्फ दुनिया कि चकाचौंध, इतना ही कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो इस चकाचौंध में इतने अंधे हो चुके हैं कि अपने माँ बाप को किसी से मिलवाने में भी शर्म मह्शूश करते हैं भूल जाते हैं कि ये वही माँ बाप हैं जिन्होंने आज उन्हें दुनिया में सर उठाकर चलने लायक बनाया है |जो अपने प्रेमी प्रेयसी को महंगे से महंगा तोहफा दे सकते हैं वही अपने माँ बाप को सौ रूपये का सॉल खरीदते समय अपने पर्स को खाली सा मह्शूश करते हैं |
ज़रा सोचिये दुनिया में ऐसी कौनसी दौलत है जो हमारे माँ बाप से बड़ी है जब उन्होंने किसी दौलत को हमसे बड़ा नहीं समझा तो हम क्यों आज वक़्त के साथ इतने बदल गए कि अपने ही माँ बाप के लिए पराये हो गए ,जिस तरह उन्होंने हमारे लिए अपना हर फ़र्ज़ निभाया वैसे ही हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी उनकी इच्छों का सम्मान करे उनके हर अरमान को अपना खुद का अरमान बनालें और झुठला दे एक मछली सारे तालाब....वाली कहावत को | ताकि हमारे माँ बाप सर उठा कर कह सकें कि हम ....के माँ बाप हैं |
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