कमर तोड़ती महंगाई
अपने पथ पर नए नए आयाम जोडती महंगाई,
चल पड़ी है अच्छे अच्छों की भी कमर तोड़ती महंगाई |
रसोई में अम्मा रोती है सब्जी आज बनाऊं क्या,
झुंझला उठते हैं अब बाबा रोज़ रोज़ मैं लाऊं क्या |
सब्जी मंडी लाल है जैसे, आटे दाल भी महंगे हैं ,
महंगी है गैस रसोई की, और महंगे नेकर, लहंगे हैं |
बिजली महंगी, दूध है महंगा, महंगा अब तो पानी है,
चांदी महंगी , सोना महंगा, महंगी प्रेम निशानी है |
वाहन पर चलने से पहले अपना जेब टटोलते हैं,
चाय की प्याली लेने में भी जैसे ह्रदय डोलते हैं |
माथे पर बल पड़ते हैं बच्चों की फीस चुकाने में,
सारा वेतन जाता है अब पुस्तक बस्ता लाने में |
आम आदमी के जीवन का, जैसे हर पल महंगा है,
आज है महंगा अब है महंगा और फिर कल भी महंगा है |
सुबह से लेकर शाम तलक, जो भी कमाई होती है,
एक दिवस की मुश्किल से, उससे भरपाई होती है |
सारे सपने महंगाई की मार में दबकर चूर हुए,
टूटे फूटे सपनों के संग, जीने को मजबूर हुए
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