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Friday, September 9, 2011
मांसाहार उचित या अनुचित....?
मांसाहार उचित या अनुचित....?
प्रोफेसर आर्य एवं मौलाना साहिब की भेंट आज बाज़ार में हो जाती हैं. मौलाना साहिब जल्दी में थे बोले की ईद आने वाली हैं इसलिए क़ुरबानी देने के लिए बकरा खरीदने जा रहा हूँ. आर्य साहिब के मन में तत्काल उन लाखो निर्दोष बकरों, बैलो, ऊँटो आदि का ख्याल आया जिनकी गर्दनो पर अल्लाह के नाम पर तलवार चला दी जाएगी. वे सब बेकसूर जानवर धर्म के नाम पर क़त्ल कर दिए जायेगे.
आर्य जी से रहा न गया और वे मौलाना साहिब से बोले की -यह क़ुरबानी मुस्लमान लोग क्यों देते हैं .
यूँ तो मौलाना जल्दी में थे पर जब इस्लाम का प्रश्न हो तो समय निकल ही आया. अपनी लम्बी बकरा दारी पर हाथ फेरते हुए बोले- इसके पीछे एक पुराना किस्सा हैं. हज़रत इब्राहीम से एक बार सपने में अल्लाह ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ यानि उनके बेटे की क़ुरबानी मांगी, अगले दिन इब्राहीम जैसे ही अपने बेटे इस्माइल की क़ुरबानी देने लगे तभी अल्लाह ने उन के बेटे को एक मेदे में तब्दील कर दिया और हज़रत इब्राहीम ने उसकी क़ुरबानी दे दी . अल्लाह उन पर बहुत मेहरबान हुआ और बस उसके बाद से हर साल मुस्लमान इस दिन को बकर ईद के नाम से बनते हैं और इस्लाम को मानने वाले बकरा, मेदा, बैल आदि की क़ुरबानी देंते हैं और उस बकरे के मांस को गरीबो में बांटा जाता हैं जिससे पुण्य मिलता हैं.
आर्य जी- जनाब अगर अनुमति हो तो में कुछ पूछना चाहता हू
मौलाना जी - बेशक से
आर्य जी- पहले तो यह की बकर का असली मतलब गाय होता हैं न की बकरा फिर बकरे, बैल, ऊंट आदि की क़ुरबानी क्यों दी जाती हैं ?
दूसरे बकर ईद के स्थान पर इसे गेंहू ईद कहते तो अच्छा होता क्योंकि एक किलो गौशत में तो दस किलो के बराबर गेंहू आ जाता हैं और वो ना केवल सस्ता पड़ता हैं अपितु खाने के लिए कई दिनों तक काम आता हैं.
आपका यह हजरत इब्राहीम वाला किस्सा कुछ कम जँच रहा हैं क्योंकि अगर इसे सही माने तो अल्लाह अत्याचारी होने के साथ साथ क्रूर भी साबित होता हैं.
आज अल्लाह किसी मुस्लमान के खवाबो में क़ुरबानी की प्रेरणा देने के लिए क्यों नहीं आते और आज के मुसलमानों को भी क्या अल्लाह पर विश्वास नहीं हैं की वे अपने बेटो की क़ुरबानी नहीं देते बल्कि एक निरपराध पशु के कत्ल के गुन्हेगार बनते हैं .
regards
Ravi Kasana
Manager-Technical
Delhi Transport Corporation(DTC)
vill & Po- Jawli,Ghaziabad
mob-9716016510
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