Friday, September 9, 2011

Real Truth abt Mahatma Gandhi


महात्मा गान्धी- कुछ अनकहे कटु तथ्य
1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।

उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने अपनी एक पुस्तक में लिखा-
"नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते थे। न्यायालय में उपस्थित उन प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित किया होता कि नथूराम निर्दोष है।"

तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति कब बदलेगी?

२ अक्तूबर (गान्धी जयन्ती) पर यह विषय विशेष रूप से विचारणीय है, जिससे कि हम भारत के भविष्य का मार्ग निर्धारित कर सकें।

कुछ और प्रश्न
1- अपने इस बाप के बचपन के चित्र नदारद हैं क्यों? केवल एक १० वर्ष के लगभग की आयु का चित्र है।
2- इस बापू के अफ़्रीका जाने के पूर्व के चित्र कहाँ है? कहीं प्रदर्शनी में भी नहीं दीखते!
3- यह न कह देना कि बापू निर्धन परिवार से था चित्र कहाँ से बनवाता? स्मरण रहे ये विदेश गया था पढ़ने को।
4- गान्धी की अपनी आत्मकथा में इस उल्लेख का क्या अर्थ है- "करमचन्द के देहावसान के पश्चात् जब माँ पुतलीबाई घर का दरवाजा पीट रही थी तो मैंने यह
कहकर दरवाजा नहीं खोला कि मैं इस अवस्था में नहीं कि बाहर आऊँ।"
5- क्या मोहनदास का बेटा इसलिए मुसलमान नहीं हो गया था कि उसे पता चल गया था कि वह एक मुसलमान जमालुद्दीन शैख का बेटा है......?
6- पाकिस्तान बनने पर वहाँ मन्दिरों के टूटने पर मोहनदास ने यह क्यों कहा कि यहाँ कोई मस्जिद नहीं टूटनी चाहिए? पाकिस्तान से हिन्दुओं के कट कर आता देख बापू ने कहा यहाँ एक भी मुस्लिम नहीं कटना चाहिए।


http://www.sikhspectrum.com/082004/gandhi_mask.htm

http://www.sikhspectrum.com/082004/gbsingh_int.htm

http://en.wikipedia.org/wiki/Gandhi_Behind_the_Mask_of_Divinity


https://www.facebook.com/note.php?note_id=437771641525

इस बापू के कुकृत्यों की सूची लम्बी है। अभी इतना ही।वन्देमातरम्!


15 अगस्त 1947 .... आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है

आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है
शासन नहीं शासक बदला है, गोरा नहीं अब काला है

15 अगस्त 1947 को देश आजाद नहीं हुआ तो हर वर्ष क्यों ख़ुशी मनाई जाती है ?
क्यों भारतवासियों के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है l इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्यों को जानें .... :

1. भारत को सत्ता हस्तांतरण 14-15 अगस्त 1947 को गुप्त दस्तावेज के तहत, जो की 1999 तक प्रकाश में नहीं आने थे (50 वर्षों तक ) l

2. भारत सरकार का संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है l

3. संविधान के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम न्यायलय, उच्च न्यायलय तथा संसद की कार्यवाही अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में होने के बजाय अंग्रेजी भाषा में होगी l

4. अप्रैल 1947 में लन्दन में उपनिवेश देश के प्रधानमंत्री अथवा अधिकारी उपस्थित हुए, यहाँ के घोषणा पात्र के खंड 3 में भारत वर्ष की इस इच्छा को निश्चयात्मक रूप में बताया है की वह ...
क ) ज्यों का त्यों ब्रिटिश का राज समूह सदस्य बना रहेगा तथा
ख ) ब्रिटिश राष्ट्र समूह के देशों के स्वेच्छापूर्ण मिलाप का ब्रिटिश सम्राट को चिन्ह (प्रतीक) समझेगा, जिनमे शामिल हैं .....
(इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, श्री लंका) ... तथा
ग ) सम्राट को ब्रिटिश समूह का अध्यक्ष स्वीकार करेगा l

5. भारत की विदेश नीति तथा अर्थ नीति, भारत के ब्रिटिश का उपनिवेश होने के कारण स्वतंत्र नहीं है अर्थात उन्हीं के अधीन है l

6. नौ-सेना के जहाज़ों पर आज भी तथाकथित भारतीय राष्ट्रीय ध्वज नहीं है l

7. जन गन मन अधिनायक जय हे ... हमारा राष्ट्र-गान नहीं है, अपितु जार्ज पंचम के भारत आगमन पर उसके स्वागत में गाया गया गान है, उपनिवेशिक प्रथाओं के कारण दबाव में इसी गीत को राष्ट्र-गान बना दिया गया ... जो की हमारी गुलामी का प्रतीक है l

8. सन 1948 में बने बर्तानिया कानून के अंतर्गत भाग 1 (1) 1948 के बर्तानिया के कानून के अनुसार हर भारतवासी बर्तानिया की रियाया है और यह कानून भारत के गणराज्य प्राप्त कर लेने के पश्चात भी लागू है l

9. यदि 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तो प्रथम गवर्नर जनरल माउन्ट-बेटन को क्यों बनाया गया ??

10. 22 जून 1948 को भारत के दुसरे गवर्नर के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने निम्न शपथ ली l
"मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यथाविधि यह शपथ लेता हूँ की मैं सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा, एवं
मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यह शपथ लेता हूँ की मैं गवर्नर जनरल के पद पर होते हुए सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सव्वा करूँगा l "

11. 14 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतन्त्रता विधि से भारत के दो उपनिवेश बनाए गए जिन्हें ब्रिटिश Common-Wealth की ...
धारा नं. 9 (1) - (2) - (3) तथा
धारा नं. 8 (1) - (2)
धारा नं. 339 (1)
धारा नं. 362 (1) - (3) - (5)
G - 18 के अनुच्छेद 576 और 7 के अंतर्गत ....

इन उपरोक्त कानूनों को तोडना या भंग करना भारत सरकार की सीमाशक्ति से बाहर की बात है तथा प्रत्येक भारतीय नागरिक इन धाराओं के अनुसार ब्रिटिश नागरिक अर्थात गोरी सन्तान है l

12. भारतीय संविधान की व्याख्या अनुच्छेद 147 के अनुसार गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 तथा indian independence act 1947 के अधीन ही की जा सकती है ... यह एक्ट ब्रिटिश सरकार ने लागू किये l

13. भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद नं. 366, 371, 372 एवं 392 को बदलने या रद्द करने की क्षमता भारत सरकार को नहीं है l

14. भारत सरकार के पास ऐसे ठोस प्रमाण अभी तक नहीं हैं, जिनसे नेताजी की वायुयान दुर्घटना में मृत्यु साबित होती है l
इसके उपरान्त मोहनदास गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ब्रिटिश न्यायाधीश के साथ यह समझौता किया कि अगर नेताजी ने भारत में प्रवेश किया, तो वह गिरफ्तार ककर ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया जाएगाl
बाद में ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान उन सभी राष्ट्रभक्तों की गिरफ्तारी और सुपुर्दगी पर मुहर लगाईं गई जिनको ब्रिटिश सरकार पकड़ नहीं पाई थी l



15. डंकल व् गैट, साम्राज्यवाद को भारत में पीछे के दरवाजों से लाने का सुलभ रास्ता बनाया है ताकि भारत की सत्ता फिर से इनके हाथों में आसानी से सौंपी जा सके l

उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है की सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को आज तक एक धोखे में ही रखा गया है, तथाकथित नेहरु गाँधी परिवार इस सच्चाई से पूर्ण रूप से अवगत थे परन्तु सत्तालोलुभ पृवृत्ति के चलते आज तक उन्होंने भारत की जनता को अँधेरे में रखा और विश्वासघात करने में पूर्ण रूप से सफल हुए l

सवाल उठता है कि ... यह भारतीय थे या .... काले अंग्रेज ?

नहीं स्वतंत्र अब तक हम, हमे स्वतंत्र होना है
कुछ झूठे देशभक्तों ने, किये जो पाप, धोना है

सरदार भगत सिंह कि मृत्यु के पीछे अंग्रेजों के कानूनों के बहाने गुंडागर्दी एवं क्रूरता के राज्य का पर्दाफाश करना एवं भारत के नौजवानों को भारत कि पीड़ा के प्रति जागृत करना उद्देश था l

राजीव दीक्षित कि शहादत भी षड्यंत्रकारी प्रतीत होती है, SEZ , परमाणु संधि, विदेशी बाजारों के षड्यंत्र ... आदि योजनाओं एवं कानूनी मकडजाल में फंसे भारत को जागृत करने तथा नवयुवकों को इन कार्यों के लिए आगे लाने के कारण l

यदि भगत सिंह और राजीव दीक्षित और समय तक जीवित रहते तो परिवर्तन और रहस्यों कि परत और खुल सकती थी l

भारत इतना गरीब देश है कि 100000,0000000 (1 लाख करोड़) के रोज रोज नए नए घोटाले होते हैं.... ?
क्या गरीब देश भारत से साड़ी दुनिया के लुटेरे व्यापार के नाम पर 20 लाख करोड़ रूपये प्रतिवर्ष ले जा सकते हैं ?
विदेशी बेंकों में जमा धन कितना हो सकता है ? एक अनुमान के तहत 280 लाख करोड़ कहा जाता है ?
पर यह सिर्फ SWISS बेंकों के कुछ बेंकों कि ही report है ... समस्त बेंकों कि नहीं, इसके अलावा दुनिया भर के और भी देशों में काला धन जमा करके रखा हुआ है ?

भारत के युवकों, अपनी संस्कृति को पहचानो, जिसमे शास्त्र और शस्त्र दोनों कि शिक्षा दी जाती थी l आज तुम्हारे पास न शास्त्र हैं न शस्त्र हैं .. क्यों ?? क्या कारण हो सकते हैं ??
भारत गरीब नहीं है ... भारत सोने कि चिड़िया था ... है ... और सदैव रहेगा l तुम्हें तुम्हारे नेता, पत्रकार और प्रशासक झूठ पढ़ाते रहे हैं l
वो इतिहास पढ़ा है तुमने जो नेहरु के प्रधानमंत्री निवास में 75 दिनों तक अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अंग्रेजों के निर्देशों पर बनाया गया l
जिसमे प्राचीन शिव मन्दिर तेजो महालय को ताज महल, ध्रुव स्तम्भ को क़ुतुब मीनार और शिव मन्दिर को जामा मस्जिद ही पढ़ाया जाता है l

सारे यूरोप - अमेरिका के लिए लूट का केंद्र बने भारत को गुलामी कि जंजीरों से मुक्त करवाने हेतु आगे आओ l
उठो.... सत्य और धर्म की संस्थापना कि हुंकार तो भरो एक बार, विश्व के सभी देशों कि बोद्धिक संपदा बने भारत l



NEHRU exposed www.youtube.com/watch?v=_C6hlKMNH4k SONIA exposed www.youtube.com/watch?v=7ZBqj_A7V98 CONGRESS exposed www.youtube.com/watch?v=taxDSPBNprU RAHUL exposed http://video.google.com/videoplay?docid=442940047421738016

गाँधी माहत्मा या तानाशाह?

मोहन दास करमचंद गाँधी जो भारत के तथाकथित राष्ट्रपिता कहलाये जाते है, इनकी कोई भी आलोचना इस देश में राष्ट्र द्रोह करार दे दी जाती है. कोई भी व्यक्ति भगवन नहीं हो सकता. हर किसी से गलतियाँ हो सकती है. हर व्यक्ति अपने जीवन में कुछ अच्छे काम करता है कुछ गलत. समाज को उसके अच्छे एंव बुरे दोनों कार्यो से प्रेरणा लेनी चाहिए. आज में गाँधी जी के ऐसे ही कुछ कार्यो की और पाठको का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ जब गाँधी जी ने जन आकांक्षा एवं लोकतंत्र के खिलाफ जाकर अपनी ”सोच” एक तानाशाह के रूप में इस देश पर थोपी थी.

पहला प्रकरण भगत सिंह से सम्बंधित है. ये हम सभी जानते है की अंग्रेजो ने भगत सिंह एवं उनके साथियों को कुछ झूठे मुकदमो में फंसा कर फांसी पर चढाने की पूरी तयारी कर ली थी. दरअसल अंग्रेजो को सबसे ज्यादा डर इन्ही क्रांतिकारियों से था. क्योंकि ये अंग्रेजो को उन्ही की भाषा में जवाब देते थे. इसलिए अंग्रेज क्रांतिकारियों का सफाया चाहते थे. वैसे ही जैसे आज कांग्रेसी बाबा राम देव जी का करना चाहते है.

गाँधी एवं कांग्रेस के नेतृत्व में देश में अंग्रेजो के खिलाफ व्यापक आन्दोलन हो रहे थे. जिस में देश की जनता भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही थी. तात्कालिक वैसरॉय लोर्ड इरविन किसी भी हालत में इन जनांदोलनो को रोकना चाहते थे. परिणामस्वरूप अंग्रेजी सरकार घोषणा करती है की वे गाँधी जी की सभी मांगे मानने के लिए तैयार है, एवं गाँधी जी को बातचीत का न्योता देती है. जिसे गाँधी जी स्वीकार कर लेते है. अंग्रेजो को लगता था की गाँधी जी सभी मांगो के साथ भगत सिंह एवं अन्य क्रांतिकारियों की रिहाई की भी मांग करेंगे. इसलिए लोर्ड इरविन इसके लिए भी तैयार थे, तथा इसके लिए उन्होंने लन्दन की भी स्वीकृति ले ली थी. दूसरी और देश की जनता में भी यही आशा थी की अब भगत सिंह एवं साथी जेल से रिहा हो जाएँगे. भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारो से देश का युवा व मजदूर वर्ग विशेष प्रभावित था. दरअसल भगत सिंह वो पहले जन नेता थे जिन्होंने लोकप्रियता के मामले में गाँधी जी को भी पीछे छोड़ दिया था. मगर देश की जनता यह सुन कर चकित रह गयी की गाँधी जी ने भगत सिंह की फांसी का जिक्र तक इरविन के साथ हुए समझोते में नहीं किया था. जबकि गाँधी जी ने दुसरे 70000 बंदियों को छुड़ा लिया था. अंग्रेजो को तो बिन मांगी मुराद मिल गयी थी. गाँधी जी के इस फैसले से देश की जनता में तीव्र प्रतिक्रिया हुई.

परिणामस्वरूप गाँधी जी जहाँ भी जाते उन्हें काले झंडे दिखाए जाने लगे. यहाँ तक की इन घटना के बाद कांग्रेस के कराची में हुए अधिवेशन तक में उन्हें काले झंडे दिखाए गए. यह पहला समय था जब गाँधी जी को इतना तीर्व जन विरोध झेलना पड़ा था. जिसका जिक्र स्वयं नेहरु ने लिखते हुए किया है की अगर भगत सिंह जिन्दा रहते तो कांग्रेस एवं गाँधी को पीछे छोड़ देते.

एक दिलचस्प बात ये है कि दो लाख से ज्यादा लोगों ने भगत सिंह की फांसी की सज़ा के खिलाफ तत्कालीन वाइसराय लार्ड माउंटबेटन को लिखित अर्जी दी थी। पूरे देश में जगह-जगह लोगों ने उनकी फांसी की सजा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। कांग्रेसी नेताओं का एक तबका भी भगत सिंह को फांसी दिए जाने के खिलाफ था। लेकिन इसमें महात्मा गांधी शामिल नहीं थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाए जाने के छह दिन बाद गांधी जी ने यंग इंडिया में एक लेखलिखा था। खुद ही देख लीजिए उसके कुछ चुनिंदा अंश...

भगत सिंह जीना नहीं चाहते थे। उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया। यहां तक कि अपील भी दाखिल नहीं की।...उन्होंने असहायता के चलते और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हिंसा का सहारा लिया। भगत सिंह ने लिखा था, “मुझे युद्ध करते हुए गिरफ्तार किया गया है। मेरे लिए फांसी का फंदा कोई मायने नहीं रखता। मुझे तोप के मुंह में रखकर उड़ा दो।” इन नायकों ने मौत के डर को जीत लिया था। आइये हम उनकी बहादुरी को शत्-शत् प्रणाम करें। लेकिन हमें उनके काम की नकल नहीं करनी चाहिए।...हमें कभी भी उनकी गतिविधियों का प्रतिपालन नहीं करना चाहिए।

अंग्रेज सरकार अपनी कोइ भी बात गाँधी से गुप्त नही रखती थी । उसकी लडाई गाँधी से नहीं, भारत की जनता से थी ।

इर्विन से समझौते की बातचीत के दौरान गाँधी ने भगत सिंह और उनके साथियों को फ़ाँसी से बचाने के लिये क्या प्रयत्न किये, इस बारे में बहुत सी अफ़वाहें फ़ैली हुई हैं । लेकिन राष्ट्रीय लेखागार की फ़ाइलों से कुछ नये तथ्य प्रकाश में आये हैं, जिन्हे मन्मथनाथ गुप्त ने ‘नवनीत’ में प्रकशित अपने लेख में उद्धृत किया है । इर्विन ने अपने रोजनामचे में लिखा है –

“दिल्ली मे जो समझौता हुआ, उससे अलग और अन्त में मिस्टर गाँधी ने भगत सिंह का उल्लेख किया, उन्होंने फ़ाँसी की सजा रद्द करने के लिये कोइ पैरवी नही की, साथ ही उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों में फ़ाँसी को स्थगित करने के बिषय में भी कुछ नही कहा ।” (फ़ाइल नं 5-45/1931 KW-2 गृहविभाग राजनीतिक शाखा)

20 मार्च को गाँधी वायसराय के गृह-सदस्य हर्बर्ट इमरसन से मिला । इमरसन ने भी रोजनामचे में लिखा है –

“मिस्टर गाँधी की इस मामले में अधिक दिलचस्पी नही मालुम हुई । मैने उनसे यह कहा कि वह सबकुछ करें ताकि अगले दिनों में सभाएँ न हों और लोगो के उग्र व्याख्यानों को रोकें । इस पर उन्होंने अपनी स्वीकृति दे दी और कहा जो कुछ भी मुझसे हो सकेगा मैं करुँगा ।” (फ़ाइल नं 33-1/1931)

क्या अर्थ हो सकता है इसका, इस बात के अतिरिक्त कि गाँधी ने स्वयं अपरोक्ष रूप में ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया, हमारे महान क्रान्तिकारी भगत सिंह और उनके साथियों को फ़ाँसी दिलाने में । अगर गाँधी चाहते तो शायद भगत सिंह और उनके साथियों को फ़ाँसी न हुई होती । मगर उसने फ़ाँसी रोकने के लिये प्रयत्न करना तो दूर, स्थिति को सरकार के अनुकूल बनाए रखने में ब्रिटिश सरकार का सहयोग किया ।

दूसरा प्रकरण नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से संबंधित है. जिनका नारा था “तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दीलाउगा”. ये घटना दरसल 1938 की है. देश की जनता गाँधी एवं कांग्रेस के अति आदर्शवादी भाषणों से उब चुकी थी. जनता नए विकल्पों की और देखने लगी थी. जो उन्हें नेताजी के रूप में मिल गया था. परिणाम स्वरुप वो गाँधी जी के विरोध के बावजूद नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए. परिणाम स्वरुप गाँधी जी के ”चमचा नेताओ” ने गाँधी जी के इशारे पर नेताजी के कामो में अडंगा डालना शुरू कर दिया था. यहाँ तक की कांग्रेस कार्यसमिति का गठन भी उन्हें नहीं करने दिया गया.

अगले साल 1939 में पुन: कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव आया. गांधीजी ने इस बार पट्टाभि सितारैमैया को खड़ा किया तथा नारा दिया की ”पट्टाभि सितारैमैया की हार मेरी हार होगी”. इसके बावजूद पट्टाभि सितारैमैया चुनाव हार गए और नेताजी पुन: कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो गए. भगत सिंह प्रकरण के बाद यह दूसरा समय था जब गाँधी के ऊपर जनता ने किसी और को वरीयता दी थी. किन्तु गाँधी के चमचो ने पुन: अपना खेल खेला एवं नेताजी के कार्यो में विघन ढालना जरी रखा. जिससे दुखी होकर आखिरकार नेताजी ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. अगर वो चाहते तो स्वयं गाँधी एवं कंपनी को कांग्रेस से बहार का रास्ता दिखा सकते थे या कांग्रेस का विभाजन कर सकते थे. किन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया. इस प्रकार गाँधी जी ने एक बार पुन: लोकतंत्र को ठगा और अपनी निजी राय देश पर थोपी. क्या यही सम्मान था गाँधी जी के दिल में लोकतंत्र के लिए. क्यों एक निर्वाचित अध्यक्ष को इस तरह हटने के लिए मजबूर किया गया?

तीसरा प्रकरण 1946 -47 का है. भारत का बटवारा एंव स्वतंत्रता निश्चित हो चुकी थी. देश के सामने यक्ष प्रशन था की प्रथम प्रधानमंत्री कोन बनेगा. 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव होने थे. ये आम धारणा थी की कांग्रेस अध्यक्ष ही प्रथम प्रधानमंत्री बनेगा. देश की जनता सरदार पटेल जी के पक्ष में थी और गाँधी जी नेहरु के पक्ष में. इसलिए ये निश्चित था की अगर सीधे चुनाव हुए तो जन दबाव में सरदार पटेल अध्यक्ष पद का चुनाव जरुर लड़ेंगे और जीतेंगे भी. इसलिए गाँधी एवं नेहरु ने चाल चलते हुए पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्षों की रायशुमारी का प्रस्ताव रखा. उस समय 16 कांग्रेस प्रांतीय अध्यक्ष हुआ करते थे जिसमे से 13 प्रांतीय अध्यक्षों ने सरदार पटेल के नाम का प्रस्ताव दिया. परन्तु गाँधी जी के आग्रह पर सरदार पटेल जी ने ये प्रस्ताव ठुकरा दिए. इस प्रकार गाँधी जी ने पुन: लोकतंत्र का गला घोटते हुए अपनी निजी राय के रूप में नेहरु को इस देश पर थोप दिया. नेहरु ने इस देश के साथ क्या क्या कुकर्म किये ये पूरा इतिहास है.

क्या ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपिता कहलाने योग्य है?

अब आप खुद ही देखिये गाँधी की तानाशाही रवैये के कारण कांग्रेस आज एक वंश की जंजीरों में जकड़ी पडी है. और देश की जड़ो को खोखला कर रही है. आज गाँधी का दूसरा नाम लूट का पर्याय बन चूका है. आज की परिस्थितियों को देखते हुए ये कहा जा सकता है की अगर देश को बचाना है तो गाँधी को ..............

अंत में एक प्रशन: क्या हम इतिहास से कोई सबक लेंगे?

Gandhi : Naked Ambition ------ Thrill of the chaste: The truth about Gandhi's sex life
क्या राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी असामान्य सेक्स बीहैवियर वाले अर्द्ध-दमित सेक्स मैनियॉक थे? जी हां, महात्मा गांधी के सेक्स-जीवन को केंद्र बनाकर लिखी गई किताब “गांधीः नैक्ड ऐंबिशन” में एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हवाले से ऐसा ही कहा गया है। महात्मा गांधी पर लिखी किताब आते ही विवाद के केंद्र में आ गई है जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में उसकी मांग बढ़ गई है। मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार जैड ऐडम्स ने पंद्रह साल के अध्ययन और शोध के बाद “गांधीः नैक्ड ऐंबिशन” को किताब का रूप दिया है।

किताब में वैसे तो नया कुछ नहीं है। राष्ट्रपिता के जीवन में आने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ गांधी के आत्मीय और मधुर रिश्तों पर ख़ास प्रकाश डाला गया है। रिश्ते को सनसनीख़ेज़ बनाने की कोशिश की गई है। मसलन, जैड ऐडम्स ने लिखा है कि गांधी नग्न होकर लड़कियों और महिलाओं के साथ सोते ही नहीं थे बल्कि उनके साथ बाथरूम में “नग्न स्नान” भी करते थे।

महात्मा गांधी हत्या के साठ साल गुज़र जाने के बाद भी हमारे मानस-पटल पर किसी संत की तरह उभरते हैं। अब तक बापू की छवि गोल फ्रेम का चश्मा पहने लंगोटधारी बुजुर्ग की रही है जो दो युवा-स्त्रियों को लाठी के रूप में सहारे के लिए इस्तेमाल करता हुआ चलता-फिरता है। आख़िरी क्षण तक गांधी ऐसे ही राजसी माहौल में रहे। मगर किसी ने उन पर उंगली नहीं उठाई। ऐसे में इस किताब में लिखी बाते लोगों ख़ासकर, गांधीभक्तों को शायद ही हजम हों। दुनिया के लिए गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के आध्यात्मिक नेता हैं। वह अहिंसा के प्रणेता और भारत के राष्ट्रपिता भी हैं। जो दुनिया को सविनय अवज्ञा और अहिंसा की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। कहना न होगा कि दुबली काया वाले उस पुतले ने दुनिया के कोने-कोने में मानव अधिकार आंदोलनों को ऊर्जा दी, उन्हें प्रेरित किया।
नई किताब यह खुलासा करती है कि गांधी उन युवा महिलाओं के साथ ख़ुद को संतप्त किया जो उनकी पूजा करती थीं और अकसर उनके साथ बिस्तर शेयर करती थीं। बहरहाल, ऐडम्स का दावा है कि लंदन से क़ानून की पढ़ाई करने के बाद वकील से गुरु बने गांधी की इमैज कठोर नेता की बनी जो अपने अनोखी सेक्सुअल डिमांड से अनुयायियों को वशीभूत कर लेता है। आमतौर पर लोग के लिए यह आचरण असहज हो सकता है पर गांधी के लिए सामान्य था। ऐडम्स ने किताब में लिखा है कि गांधी ने अपने आश्रमों में इतना कठोर अनुशासन बनाया था कि उनकी छवि 20वीं सदी के धर्मवादी नेताओं जैम्स वॉरेन जोन्स और डेविड कोरेश की तरह बन गई जो अपनी सम्मोहक सेक्स अपील से अनुयायियों को क़रीब-क़रीब ज्यों का त्यों वश में कर लेते थे। ब्रिटिश हिस्टोरियन के मुताबिक महात्मा गांधी सेक्स के बारे लिखना या बातें करना बेहद पसंद करते थे। किताब के मुताबिक हालांकि अन्य उच्चाकाक्षी पुरुषों की तरह गांधी कामुक भी थे और सेक्स से जुड़े तत्थों के बारे में आमतौर पर खुल कर लिखते थे। अपनी इच्छा को दमित करने के लिए ही उन्होंने कठोर परिश्रम का अनोखा स्वाभाव अपनाया जो कई लोगों को स्वीकार नहीं हो सकता।

किताब की शुरुआत ही गांधी की उस स्वीकारोक्ति से हुई है जिसमें गांधी ख़ुद लिखा या कहा करते थे कि उनके अंदर सेक्स-ऑब्सेशन का बीजारोपण किशोरावस्था में हुआ और वह बहुत कामुक हो गए थे। 13 साल की उम्र में 12 साल की कस्तूरबा से विवाह होने के बाद गांधी अकसर बेडरूम में होते थे। यहां तक कि उनके पिता कर्मचंद उर्फ कबा गांधी जब मृत्यु-शैया पर पड़े मौत से जूझ रहे थे उस समय किशोर मोहनदास पत्नी कस्तूरबा के साथ अपने बेडरूम में सेक्स का आनंद ले रहे थे।
किताब में कहा गया है कि विभाजन के दौरान नेहरू गांधी को अप्राकृतिक और असामान्य आदत वाला इंसान मानने लगे थे। सीनियर लीडर जेबी कृपलानी और वल्लभभाई पटेल ने गांधी के कामुक व्यवहार के चलते ही उनसे दूरी बना ली। यहां तक कि उनके परिवार के सदस्य और अन्य राजनीतिक साथी भी इससे ख़फ़ा थे। कई लोगों ने गांधी के प्रयोगों के चलते आश्रम छोड़ दिया। ऐडम ने गांधी और उनके क़रीबी लोगों के कथनों का हवाला देकर बापू को अत्यधिक कामुक साबित करने का पूरा प्रयास किया है। किताब में पंचगनी में ब्रह्मचर्य का प्रयोग का भी वर्णन किया है, जहां गांधी की सहयोगी सुशीला नायर गांधी के साथ निर्वस्त्र होकर सोती थीं और उनके साथ निर्वस्त्र होकर नहाती भी थीं। किताब में गांधी के ही वक्तव्य को उद्धरित किया गया है। मसलन इस बारे में गांधी ने ख़ुद लिखा है, “नहाते समय जब सुशीला निर्वस्त्र मेरे सामने होती है तो मेरी आंखें कसकर बंद हो जाती हैं। मुझे कुछ भी नज़र नहीं आता। मुझे बस केवल साबुन लगाने की आहट सुनाई देती है। मुझे कतई पता नहीं चलता कि कब वह पूरी तरह से नग्न हो गई है और कब वह सिर्फ अंतःवस्त्र पहनी होती है।”

किताब के ही मुताबिक जब बंगाल में दंगे हो रहे थे गांधी ने 18 साल की मनु को बुलाया और कहा “अगर तुम साथ नहीं होती तो मुस्लिम चरमपंथी हमारा क़त्ल कर देते। आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें।” ऐडम का दावा है कि गांधी के साथ सोने वाली सुशीला, मनु और आभा ने गांधी के साथ शारीरिक संबंधों के बारे हमेशा अस्पष्ट बात कही। जब भी पूछा गया तब केवल यही कहा कि वह ब्रह्मचर्य के प्रयोग के सिद्धांतों का अभिन्न अंग है।

ऐडम्स के मुताबिक गांधी अपने लिए महात्मा संबोधन पसंद नहीं करते थे और वह अपने आध्यात्मिक कार्य में मशगूल रहे। गांधी की मृत्यु के बाद लंबे समय तक सेक्स को लेकर उनके प्रयोगों पर लीपापोती की जाती रही। हत्या के बाद गांधी को महिमामंडित करने और राष्ट्रपिता बनाने के लिए उन दस्तावेजों, तथ्यों और सबूतों को नष्ट कर दिया, जिनसे साबित किया जा सकता था कि संत गांधी दरअसल सेक्स मैनियैक थे। कांग्रेस भी स्वार्थों के लिए अब तक गांधी और उनके सेक्स-एक्सपेरिमेंट से जुड़े सच को छुपाती रही है। गांधीजी की हत्या के बाद मनु को मुंह बंद रखने की सलाह दी गई। सुशीला भी इस मसले पर हमेशा चुप ही रहीं।
किताब में ऐडम्स दावा करते हैं कि सेक्स के जरिए गांधी अपने को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध और परिष्कृत करने की कोशिशों में लगे रहे। नवविवाहित जोड़ों को अलग-अलग सोकर ब्रह्मचर्य का उपदेश देते थे। ऐडम्स के अनुसार सुशीला नायर, मनु और आभा के अलावा बड़ी तादाद में महिलाएं गांधी के क़रीब आईं। कुछ उनकी बेहद ख़ास बन गईं। बंगाली परिवार की विद्वान और ख़ूबसूरत महिला सरलादेवी चौधरी से गांधी का संबंध जगज़ाहिर है। हालांकि गांधी केवल यही कहते रहे कि सरलादेवी उनकी “आध्यात्मिक पत्नी” हैं। गांधी जी डेनमार्क मिशनरी की महिला इस्टर फाइरिंग को प्रेमपत्र लिखते थे। इस्टर जब आश्रम में आती तो बाकी लोगों को जलन होती क्योंकि गांधी उनसे एकांत में बातचीत करते थे। किताब में ब्रिटिश एडमिरल की बेटी मैडलीन स्लैड से गांधी के मधुर रिश्ते का जिक्र किया गया है जो हिंदुस्तान में आकर रहने लगीं और गांधी ने उन्हें मीराबेन का नाम दिया।

ऐडम्स ने कहा है कि नब्बे के दशक में उसे अपनी किताब “द डाइनैस्टी” लिखते समय गांधी और नेहरू के रिश्ते के बारे में काफी कुछ जानने को मिला। इसके बाद लेखक की तमन्ना थी कि वह गांधी के जीवन को अन्य लोगों के नजरिए से किताब के जरिए उकेरे। यह किताब उसी कोशिश का नतीजा है। जैड दावा करते हैं कि उन्होंने ख़ुद गांधी और उन्हें बेहद क़रीब से जानने वालों की महात्मा के बारे में लिखे गए किताबों और अन्य दस्तावेजों का गहन अध्ययन और शोध किया है। उनके विचारों का जानने के लिए कई साल तक शोध किया। उसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे।

इस बारे में ऐडम्स ने स्वीकार किया है कि यह किताब विवाद से घिरेगी। उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं इस एक किताब को पढ़कर भारत के लोग मुझसे नाराज़ हो सकते हैं लेकिन जब मेरी किताब का लंदन विश्वविद्यालय में विमोचन हुआ तो तमाम भारतीय छात्रों ने मेरे प्रयास की सराहना की, मुझे बधाई दी।” 288 पेज की करीब आठ सौ रुपए मूल्य की यह किताब जल्द ही भारतीय बाज़ार में उपलब्ध होगी। 'गांधीः नैक्ड ऐंबिशन' का लंदन यूनिवर्सिटी में विमोचन हो चुका है। किताब में गांधी की जीवन की तक़रीबन हर अहम घटना को समाहित करने की कोशिश की गई है। जैड ऐडम्स ने गांधी के महाव्यक्तित्व को महिमामंडित करने की पूरी कोशिश की है। हालांकि उनके सेक्स-जीवन की इस तरह व्याख्या की है कि गांधीवादियों और कांग्रेसियों को इस पर सख़्त ऐतराज़ हो सकता है।

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क्या गांधी जी राष्ट्रपिता हैँ !
गांधी जी के कट्टर भक्त, भारत की केन्द्रिय सरकार और कुछ हमारे अपने भारतवासी जो भारत की संस्कृति और इतिहास से अनभिज्ञ हैँ गांधी जी को राष्ट्रपिता कहते हैँ । गांधी जी भी अपने आपकोँ राष्ट्रपिता कहलाने मेँ गर्व का अनुभव करते थे । भारत एक सनातन राष्ट्र हैँ और यहाँ की संस्कृति अरबोँ वर्ष पुरानी हैँ । इससे पुराना राष्ट्र विश्व मेँ कोई दूसरा नहीँ हैँ, तो फिर इसका पिता अट्ठारहवीँ - उन्नीसवीँ ईसाई सदी मेँ कैसे पैदा हो सकता हैँ ! यह महान आश्चर्य की बात है कि अरबोँ वर्षो से यह राष्ट्र बिना पिता के कैसे चल रहा था ?

राष्ट्रपिता की अवधारणा पाश्चात्य मैकालेवाद की देन हैँ । भारत की संस्कृति तो पृथ्वी को, जन्म भूमि को माता के रूप मेँ देखती हैँ और अपने आपकोँ उसका पुत्र मानती हैँ । यदि हम पाश्चात्य अवधारणा पर ही विचार करेँ, तो जो अन्न, विद्या और सुशिक्षा आदि का दान देकर पालन - पोषण और रक्षण करता हैँ, वहीँ पिता कहलाता हैँ । तो क्या गांधी जी ने शास्त्र की आज्ञानुसार इस राष्ट्र का पोषण और रक्षण किया था जो वह राष्ट्रपिता हुये ? जबकि वास्तव मेँ गांधी जी एक ऐसे अहिँसक हत्यारे थे जिन्होँने अपने निजी स्वार्थ के लिये स्वतंत्र अखण्ड भारत के उपासक सच्चे देशभक्तोँ को नष्ट कराया और बाद मेँ भारत माता को भी टुकडोँ मेँ विभाजित करा दिया । यदि गांधी जी चाहते तो पाकिस्तान नहीँ बनता ।

गांधी जी इस राष्ट्र के पिता हैँ, तो यह राष्ट्र उनका पुत्र हुआ और जो अपने पुत्र के टुकडे करा देँ, वह पुत्र का रक्षक हुआ या भक्षक ? वास्तव मेँ गांधी जी इस राष्ट्र के पिता तो क्या पुत्र कहलाने के लायक भी नहीँ थे, क्योँकि पुत्र वह होता हैँ जो अपने पिता को दुर्गति से बचाता हैँ । आधुनिक भारत राष्ट्र की दुर्गति करने वाले ही सिर्फ गांधी जी थे, इसलिए वे इस राष्ट्र के पिता तो क्या, पुत्र भी कहलाने के अधिकारी नहीँ हैँ ।

3.गांधी - मुसलमानो का मसीहा , हिन्दी ,हिन्दू , हिंदुस्तान का प्रबल द्रोही
गांधी की दृष्टि में राष्ट्रवाद का अर्थ सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण था । सन 1921 के खिलाफत आंदोलन को गांधी ने समर्थन देकर मुसलमानो में कठमुललापन , कट्टरता , और धर्मांधता बधाई ही , साथ ही उन्हे हिन्दुओ के नरसंघार करने को प्रेरित करते रहे ... मालबार में मोपाला मुसलमानो ने लगभग 22 हजार हिन्दुओ को बड़ी क्रूरता से कत्ल कर दिया । लेकिन गांधी को इस हिन्दुओ के नरसंघार से कोई दुख नहीं हुआ , बल्कि गांधी ने उसका समर्थन करते हुये कहा की में समझता था मुस्लिम अपने मजहब पर अमल कर रहे है।
एक मदांध मुसलमान अब्दुल रसीद ने 23 दिसंबर 1923 को स्वामी श्रध्द्धानंद सरस्वती जी की हत्या कर दी थी , लेकिन गांधी ने इस जघन्य हत्याकांड की निंदा करना तो दूर , हत्यारे को प्यारे रसीद कहकर संबोधित किया । इतना ही नही जब अंग्रेज़ सरकार ने अब्दुल रसीद को फासी की सजा सुनाई तो गांधी ने तत्काल रसीद के लिए सरकार से क्षमा और दया की भीख मांगी , जिसे अंग्रेज़ सरकार ने अस्वीकार कर दिया ।
लेकिन इसी गांधी ने देश के अमर शहीदो सरदार भगत सिंह , व उनके साथियो को फांसी की सजा न देने के लिए वायसराय से प्रार्थना करने से इंकार कर दिया था। यह कहकर कि भगत सिह और उसके साथ हिंसा के अपराधी थे , यहा तक कि गांधी ने भगत सिंह को आतंक का पर्याय बताते हुये फासी की सजा को उचित ठहराया था
1939 में निजाम हैदराबाद ने सत्यार्थ प्रकाश पर तथा मठ –मंदिरो में पूजा करने पर प्रतिबंध लगा दिया था । गांधी इसी निजाम की क्रूरता का विरोध करने के वजाय , निजाम और मुसलमानो का पक्ष लेते हुये राजकुमारी अमृत कौर को लिखा “ में माननीय निजाम व मुसलमानो को दुखी नहीं करना चाहता था “
गांधी को कभी यह याद नहीं रहा कि भारत हिन्दू बाहुल देश है । भारत को स्वतंत्र कराने कि लड़ाई मुख्य रूप से हिन्दुओ ने ही शुरू कि थी , हिन्दू ही जूझ रहे थे और हिन्दू ही शहीद हो रहे थे । लेकिन गांधी अंग्रेज़ो कि तरह मुसलमानो का पक्ष लेते रहे तथा उनकी अलगाववादी मांगो को बढ़ावा देते रहे ।
16 अगस्त 1946 को जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के तहत कलकतते में 20 हजार हिन्दुओ की मुसलमानो द्वारा हत्या कर दी गयी । उस समय बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार थी । तब तत्काल गांधी ने मुसलमानो की रक्षा के लिए (हिन्दुओ की नहीं ) पहले राजा जी को वह का राज्यपाल नियुक्त करवाया , फिर स्वयं पाहुचकर वहा सुहारवर्दी के साथ रहने लगे और आमरण अनशन शुरू कर दिया ताकि हिन्दू लोग मुसलमानो को न मारे बल्कि मुसलमानो की रक्षा करे ।
1947 में जब भारत विभाजन के समय पाकिस्तान में हिन्दुओ और सिक्खो की जघन्य हत्याए हो रही थी , ट्रेनों में , बसो में हिन्दुओ और सिक्खो कि औरतों बच्चो , बूढ़ो, जवानो को बड़े बेरहमी से कत्ल करके लाशे हिंदुस्तान भेजी जा रही थी तब गांधी ने हिन्दुओ और सिक्खो को सलाह दी कि तुम मुस्लिम हत्यारो के प्रति प्रेम भावना प्रदर्शित करो .... 23 सितंबर 1947 की प्रार्थना सभा में गांधी ने कहा था – में अपने परामर्श को फिर दोहराता हू , हिन्दुओ और सिक्खो को भारत नहीं आना चाहिए , वही मर जाना चाहिए ।
सितंबर 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था और वह हिन्दुओ तथा सिक्खो को काटा जा रहा था लेकिन गांधी पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपया दिलाने के लिए आमरण अनशन पर बैठ गए और भारत से पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपया दिलवाकर ही दम लिया ।
4 नवंबर 1947 कि प्रार्थना सभा में गांधी ने कहा था – भारत कोई धार्मिक राज नहीं है । हिन्दुओ के धर्म को किसी दूसरे पर थोपा नहीं जा सकता , में गोसेवा मे विश्वास रखता हू , परंतु इसे कानूनन बंद करने से मुसलमानो के साथ अन्याय हो जाएगा ( क्यो कि मुल्ले गाय नहीं काटेंगे तो उनका मजहब कैसा ? )
24 जुलाई 1947 को दिल्ली में अपने दैनिक भाषण में गांधी ने कहा था – “यद्यपि में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का दो बार अध्यक्ष रह चुका हू , परंतु फिर भी मेरा ये दावा है कि हिंदुस्तान कि राष्ट्रभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी नहीं हो सकती । थू
अब जरा इन बातो पर गौर कीजिये –
1 – गांधी अहिंसा का उपदेश सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओ के लिए ही देता था । मुस्लिम कट्टरपंथियो एवं हत्यारो का प्रतीकार न करने की सलाह हिन्दुओ और सिक्खो को देते रहने कि उसकी फितरत थी । गांधी इस्लाम का पक्का गुलाम था ।
2- 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओ को संभोधित करते हुये गांधी ने कहा था – “तब हम अहिंसा के डेरे, लीग की हिंसा के क्षेत्र में भी गाढ सकेंगे । हम बगर उनका (मुसलमानो का ) खून बहाये अपने रक्त के भेंट देकर लीग के साथ “समझोता” कर सकेंगे । ये सिर्फ गांधी द्वारा हिन्दुओ को , सिक्खो को कटवाने मरवाने की एक सोची समझी चाल थी , इससे साफ सिध्ध होता ही कि गांधी मुसलमानो का जड़ खरीदा गुलाम था और हिन्दी , हिन्दू , हिंदुस्तान का प्रबल विरोधी था ।
3 – जलियाँ वाले बाग में भीषण नरसंघार करने वाले अंग्रेज़ अधिकारी जनरल डायर पर मुकदमा चलाने के आंदोलन को गांधी ने समर्थन देने से इंकार कर दिया था , कारण ऐसा नाराधाम नीच जनरल डायर को दंड देने में भी गांधी को हिंसा की बू आती थी ।
4- अगर गांधी हस्तक्षेप करता तो भगतसिंह और उनके साथियो को फांसी से बचाया जा सकता था , किन्तु गांधी ने इन वीर शहीदो को हिंसा का दोषी माना और आतंकवादी करार देकर फांसी का हकदार बताया ।
5- गांधी कि दृष्टि में सैनिक होना पाप था । गांधी ने सैनिको को हल चलाने और शौचालय साफ करने कि सलाह दी थी । क्या ऐसा करना गांधी द्वारा सैनिको का अपमान नहीं था ? क्या गांधी का लक्ष्य भारत की सैन्य शक्ति को कमजोर करके उनका मनोबल तोड़ना नहीं था ?
6- गांधी ने हिंदुहदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज आदि को पथभृष्ट कहा था । गांधी ने कट्टर मुसलमानो के तुष्टीकरण के लिए , उनकी वाह वाही के लिए , भारत के राष्ट्रीय वीरो , महापुरुषों , दशमेश गुरु गोविंद सिंह , महाराना प्रताप , छत्रपति शिवाजी महाराज , को पथभ्रष्ट देशभक्त कहकर उनका घोर अपमान किया ।
7 – अक्तूबर 1938 में हैदराबाद दक्षिण के निजाम उस्मान आली के अत्याचारी शाशन के विरुद्ध सिक्खो और हिन्दुओ के संघर्ष को समर्थन देने से गांधी ने ये कहकर मना कर दिया कि – वे महामहिम निजाम को परेशान नहीं करना चाहते
8 – गांधी ने स्वामी सरस्वती कि मुस्लिम द्वारा हत्या कर दिये जाने पर , हत्यारे का पक्ष लिया और मुस्लिम समुदाय से क्षमा याचना की थी (ये अहिंसा का असली रूप है वाह )
9 – जब मुस्लिम लीग के मतान्ध सदस्यो ने पाकिस्तान को प्राप्त करने के लिए बल प्रयोग की धमकी दी , तो गांधी ने म्सुलिम लीग से प्रार्थना की कि वे मुसलमानो द्वारा शासित होने के लिए तैयार है । शेष हिंदुस्तान को भी मुगलिस्तान बनाने के मुसलमानो के स्वप्न को साकार करने के लिए गांधी ने 1947 में लॉर्ड माउंटबेटेन को यह सुझाव दिया कि पूरे भारत का शासन जिन्ना को सौंप दिया जाये और उन्हे अपना मंत्रिमंडल बनाने का पूरा अधिकार दे दिया जाये...कॉंग्रेस इसका पूरा समर्थन करेगी ।
10 – गांधी ने सोमनाथ के मंदिर को सरकारी खजाने से बनवाने के मंत्रिमंडल के निर्णय का खुला विरोध कार्ट हुये कहा कि मंदिर का निर्माण सरकारी खजाने से न होकर जनता के कोष से किया जाये , और इसी गांधी ने जनवरी 1948 में नेहरू और पटेल पर दवाब डाला कि दिल्ली की जामा मस्जिद का नवीनीकरण सरकारी खजाने से किया जाये और करवाकर ही माने , जब कि सोमनाथ मंदिर को सरकारी खजाने से नहीं बनने दिया ।
गांधी ने अपने सारे जीवन में केवल मुसलमानो के दमनकारी कार्यो कि प्रशंसा ही की है उसे हिन्दुओ को मुसलमानो द्वारा गाजर मुली कि तरह कटवाने में मजा आता था । वास सदैव मुसलमानो को खून खराबे के लिए प्रेरित ही करता रहा ( उनका साथ देकर ) ...... फिर उसे हम कैसे अहिंसावादी या महात्मा कह सकते हा ?
ये तो गांधी की काली करतूतों की झलक मात्र है ...अगर उसके जीवन कि पूर्ण कारगुजारियों को सामने ला दिया जाये ...तो गांधी एक क्रूर , हिंसक , दुरात्मा , राष्ट्र के प्रति , सनातन धर्म के प्रति , हिन्दुओ और सिक्खो के प्रति गद्दार और एक मक्कार चरित्र के अलावा और कुछ नहीं है ... गांधी कि महात्मागिरी एक छलावा और धोखा थी ...गांधी का अहिंसा का नारा केवल हिन्दुओ को नपुंसक बनाने, और उन्हे भेड बकरियो कि तरह कटवाने के लिए था , जैसे अहिंसा तो कदापि नहीं कहा जा सकता । वास्तव में इस तथाकथित अहिंसा के देवदूत को अहिना का मतलब , अहिंसा कि परिभाषा भी पता नहीं थी .... इसके अनुसार अहिंसा का मतलब ........ हिन्दू मुस्लिमो से कटते रहे , पिटते रहे , उनकी माँ बहाने सड्को पर नंगी घुमाई जाती रहे , खुली सड्को पर उनके साथ सामूहिक बलात्कार हो .....बस ..... गांधी अगर अहिंसा प्रिय था तो उसने हमेशा मुस्लिमो के दुराचारो का और घोर हिंसक करित्यों का कभी विरोध क्यो नहीं किया ? बल्कि हमेशा समर्थन ही किया ।अपने ब्रांहचर्या के प्रयोग के लिए अपनी जवान पोतियो के साथ , खुद नंगा होकर , अपनी पोतियो को नंगा करके उनके साथ सोने वाले गांधी को , आश्रम कि महिलाओ को नंगा करके उनके साथ सोने वाले उस गांधी को सिर्फ और सिर्फ विवेकहींन ,भ्रांतिपूर्ण मनुष्य ही अपना आदर्श मान सकते है ।
गांधी के दुष्कृत्यों को बयान करने मे इस जैसे हजार लेख भी सक्षम नहीं है पर इन गिनी चुनी पक्तियों से ही गांधी कि सच्चाई उजागर हो रही है ....गांधी को अवतार के रूप में भारत में सत्ता के दलालो द्वारा प्रस्तुत करना अरबों हिन्दुओ को धोखा देना है ... झूठ है पाखंड है ..... नीचता है .......... जय जय श्री राम

Gandhi : Naked Ambition ------ Thrill of the chaste: The truth about Gandhi's sex life
क्या राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचंद गांधी असामान्य सेक्स बीहैवियर वाले अर्द्ध-दमित सेक्स मैनियॉक थे? जी हां, महात्मा गांधी के सेक्स-जीवन को केंद्र बनाकर लिखी गई किताब “गांधीः नैक्ड ऐंबिशन” में एक ब्रिटिश प्रधानमंत्री के हवाले से ऐसा ही कहा गया है। महात्मा गांधी पर लिखी किताब आते ही विवाद के केंद्र में आ गई है जिसके चलते अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में उसकी मांग बढ़ गई है। मशहूर ब्रिटिश इतिहासकार जैड ऐडम्स ने पंद्रह साल के अध्ययन और शोध के बाद “गांधीः नैक्ड ऐंबिशन” को किताब का रूप दिया है।

किताब में वैसे तो नया कुछ नहीं है। राष्ट्रपिता के जीवन में आने वाली महिलाओं और लड़कियों के साथ गांधी के आत्मीय और मधुर रिश्तों पर ख़ास प्रकाश डाला गया है। रिश्ते को सनसनीख़ेज़ बनाने की कोशिश की गई है। मसलन, जैड ऐडम्स ने लिखा है कि गांधी नग्न होकर लड़कियों और महिलाओं के साथ सोते ही नहीं थे बल्कि उनके साथ बाथरूम में “नग्न स्नान” भी करते थे।

महात्मा गांधी हत्या के साठ साल गुज़र जाने के बाद भी हमारे मानस-पटल पर किसी संत की तरह उभरते हैं। अब तक बापू की छवि गोल फ्रेम का चश्मा पहने लंगोटधारी बुजुर्ग की रही है जो दो युवा-स्त्रियों को लाठी के रूप में सहारे के लिए इस्तेमाल करता हुआ चलता-फिरता है। आख़िरी क्षण तक गांधी ऐसे ही राजसी माहौल में रहे। मगर किसी ने उन पर उंगली नहीं उठाई। ऐसे में इस किताब में लिखी बाते लोगों ख़ासकर, गांधीभक्तों को शायद ही हजम हों। दुनिया के लिए गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के आध्यात्मिक नेता हैं। वह अहिंसा के प्रणेता और भारत के राष्ट्रपिता भी हैं। जो दुनिया को सविनय अवज्ञा और अहिंसा की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। कहना न होगा कि दुबली काया वाले उस पुतले ने दुनिया के कोने-कोने में मानव अधिकार आंदोलनों को ऊर्जा दी, उन्हें प्रेरित किया।
नई किताब यह खुलासा करती है कि गांधी उन युवा महिलाओं के साथ ख़ुद को संतप्त किया जो उनकी पूजा करती थीं और अकसर उनके साथ बिस्तर शेयर करती थीं। बहरहाल, ऐडम्स का दावा है कि लंदन से क़ानून की पढ़ाई करने के बाद वकील से गुरु बने गांधी की इमैज कठोर नेता की बनी जो अपने अनोखी सेक्सुअल डिमांड से अनुयायियों को वशीभूत कर लेता है। आमतौर पर लोग के लिए यह आचरण असहज हो सकता है पर गांधी के लिए सामान्य था। ऐडम्स ने किताब में लिखा है कि गांधी ने अपने आश्रमों में इतना कठोर अनुशासन बनाया था कि उनकी छवि 20वीं सदी के धर्मवादी नेताओं जैम्स वॉरेन जोन्स और डेविड कोरेश की तरह बन गई जो अपनी सम्मोहक सेक्स अपील से अनुयायियों को क़रीब-क़रीब ज्यों का त्यों वश में कर लेते थे। ब्रिटिश हिस्टोरियन के मुताबिक महात्मा गांधी सेक्स के बारे लिखना या बातें करना बेहद पसंद करते थे। किताब के मुताबिक हालांकि अन्य उच्चाकाक्षी पुरुषों की तरह गांधी कामुक भी थे और सेक्स से जुड़े तत्थों के बारे में आमतौर पर खुल कर लिखते थे। अपनी इच्छा को दमित करने के लिए ही उन्होंने कठोर परिश्रम का अनोखा स्वाभाव अपनाया जो कई लोगों को स्वीकार नहीं हो सकता।

किताब की शुरुआत ही गांधी की उस स्वीकारोक्ति से हुई है जिसमें गांधी ख़ुद लिखा या कहा करते थे कि उनके अंदर सेक्स-ऑब्सेशन का बीजारोपण किशोरावस्था में हुआ और वह बहुत कामुक हो गए थे। 13 साल की उम्र में 12 साल की कस्तूरबा से विवाह होने के बाद गांधी अकसर बेडरूम में होते थे। यहां तक कि उनके पिता कर्मचंद उर्फ कबा गांधी जब मृत्यु-शैया पर पड़े मौत से जूझ रहे थे उस समय किशोर मोहनदास पत्नी कस्तूरबा के साथ अपने बेडरूम में सेक्स का आनंद ले रहे थे।
किताब में कहा गया है कि विभाजन के दौरान नेहरू गांधी को अप्राकृतिक और असामान्य आदत वाला इंसान मानने लगे थे। सीनियर लीडर जेबी कृपलानी और वल्लभभाई पटेल ने गांधी के कामुक व्यवहार के चलते ही उनसे दूरी बना ली। यहां तक कि उनके परिवार के सदस्य और अन्य राजनीतिक साथी भी इससे ख़फ़ा थे। कई लोगों ने गांधी के प्रयोगों के चलते आश्रम छोड़ दिया। ऐडम ने गांधी और उनके क़रीबी लोगों के कथनों का हवाला देकर बापू को अत्यधिक कामुक साबित करने का पूरा प्रयास किया है। किताब में पंचगनी में ब्रह्मचर्य का प्रयोग का भी वर्णन किया है, जहां गांधी की सहयोगी सुशीला नायर गांधी के साथ निर्वस्त्र होकर सोती थीं और उनके साथ निर्वस्त्र होकर नहाती भी थीं। किताब में गांधी के ही वक्तव्य को उद्धरित किया गया है। मसलन इस बारे में गांधी ने ख़ुद लिखा है, “नहाते समय जब सुशीला निर्वस्त्र मेरे सामने होती है तो मेरी आंखें कसकर बंद हो जाती हैं। मुझे कुछ भी नज़र नहीं आता। मुझे बस केवल साबुन लगाने की आहट सुनाई देती है। मुझे कतई पता नहीं चलता कि कब वह पूरी तरह से नग्न हो गई है और कब वह सिर्फ अंतःवस्त्र पहनी होती है।”

किताब के ही मुताबिक जब बंगाल में दंगे हो रहे थे गांधी ने 18 साल की मनु को बुलाया और कहा “अगर तुम साथ नहीं होती तो मुस्लिम चरमपंथी हमारा क़त्ल कर देते। आओ आज से हम दोनों निर्वस्त्र होकर एक दूसरे के साथ सोएं और अपने शुद्ध होने और ब्रह्मचर्य का परीक्षण करें।” ऐडम का दावा है कि गांधी के साथ सोने वाली सुशीला, मनु और आभा ने गांधी के साथ शारीरिक संबंधों के बारे हमेशा अस्पष्ट बात कही। जब भी पूछा गया तब केवल यही कहा कि वह ब्रह्मचर्य के प्रयोग के सिद्धांतों का अभिन्न अंग है।

ऐडम्स के मुताबिक गांधी अपने लिए महात्मा संबोधन पसंद नहीं करते थे और वह अपने आध्यात्मिक कार्य में मशगूल रहे। गांधी की मृत्यु के बाद लंबे समय तक सेक्स को लेकर उनके प्रयोगों पर लीपापोती की जाती रही। हत्या के बाद गांधी को महिमामंडित करने और राष्ट्रपिता बनाने के लिए उन दस्तावेजों, तथ्यों और सबूतों को नष्ट कर दिया, जिनसे साबित किया जा सकता था कि संत गांधी दरअसल सेक्स मैनियैक थे। कांग्रेस भी स्वार्थों के लिए अब तक गांधी और उनके सेक्स-एक्सपेरिमेंट से जुड़े सच को छुपाती रही है। गांधीजी की हत्या के बाद मनु को मुंह बंद रखने की सलाह दी गई। सुशीला भी इस मसले पर हमेशा चुप ही रहीं।
किताब में ऐडम्स दावा करते हैं कि सेक्स के जरिए गांधी अपने को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध और परिष्कृत करने की कोशिशों में लगे रहे। नवविवाहित जोड़ों को अलग-अलग सोकर ब्रह्मचर्य का उपदेश देते थे। ऐडम्स के अनुसार सुशीला नायर, मनु और आभा के अलावा बड़ी तादाद में महिलाएं गांधी के क़रीब आईं। कुछ उनकी बेहद ख़ास बन गईं। बंगाली परिवार की विद्वान और ख़ूबसूरत महिला सरलादेवी चौधरी से गांधी का संबंध जगज़ाहिर है। हालांकि गांधी केवल यही कहते रहे कि सरलादेवी उनकी “आध्यात्मिक पत्नी” हैं। गांधी जी डेनमार्क मिशनरी की महिला इस्टर फाइरिंग को प्रेमपत्र लिखते थे। इस्टर जब आश्रम में आती तो बाकी लोगों को जलन होती क्योंकि गांधी उनसे एकांत में बातचीत करते थे। किताब में ब्रिटिश एडमिरल की बेटी मैडलीन स्लैड से गांधी के मधुर रिश्ते का जिक्र किया गया है जो हिंदुस्तान में आकर रहने लगीं और गांधी ने उन्हें मीराबेन का नाम दिया।

ऐडम्स ने कहा है कि नब्बे के दशक में उसे अपनी किताब “द डाइनैस्टी” लिखते समय गांधी और नेहरू के रिश्ते के बारे में काफी कुछ जानने को मिला। इसके बाद लेखक की तमन्ना थी कि वह गांधी के जीवन को अन्य लोगों के नजरिए से किताब के जरिए उकेरे। यह किताब उसी कोशिश का नतीजा है। जैड दावा करते हैं कि उन्होंने ख़ुद गांधी और उन्हें बेहद क़रीब से जानने वालों की महात्मा के बारे में लिखे गए किताबों और अन्य दस्तावेजों का गहन अध्ययन और शोध किया है। उनके विचारों का जानने के लिए कई साल तक शोध किया। उसके बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे।

इस बारे में ऐडम्स ने स्वीकार किया है कि यह किताब विवाद से घिरेगी। उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं इस एक किताब को पढ़कर भारत के लोग मुझसे नाराज़ हो सकते हैं लेकिन जब मेरी किताब का लंदन विश्वविद्यालय में विमोचन हुआ तो तमाम भारतीय छात्रों ने मेरे प्रयास की सराहना की, मुझे बधाई दी।” 288 पेज की करीब आठ सौ रुपए मूल्य की यह किताब जल्द ही भारतीय बाज़ार में उपलब्ध होगी। 'गांधीः नैक्ड ऐंबिशन' का लंदन यूनिवर्सिटी में विमोचन हो चुका है। किताब में गांधी की जीवन की तक़रीबन हर अहम घटना को समाहित करने की कोशिश की गई है। जैड ऐडम्स ने गांधी के महाव्यक्तित्व को महिमामंडित करने की पूरी कोशिश की है। हालांकि उनके सेक्स-जीवन की इस तरह व्याख्या की है कि गांधीवादियों और कांग्रेसियों को इस पर सख़्त ऐतराज़ हो सकता है।

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